हिन्दू धर्म में एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। एेसा कहा जाता है कि एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे जया, विजया, जयंती तथा पापनाशिनी नाम से भी जाना जाता है। हर माह में दो एकादशी आती है, एक कृष्ण पक्ष में आैर दूसरी शुक्लपक्ष में। जिसमें ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है, अत्यधिक पुण्यदायी है क्यूंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से पूरे वर्ष की एकादशी करने का फल मिलता है। इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। तो आइए जानते है निर्जला एकादशी से जुड़ी कथा आैर इसके अन्य दिलचस्प पहलूआें के बारे मेंः
निर्जला एकादशी तारीखः 5 जून 2017, सोमवार
निर्जला एकादशी के “भीमसेनी एकादशी ” कहीं जाने के पीछे छिपा कारण एवं महत्व
शास्त्रों में यह एकादशी “भीमसेन एकादशी” के नाम से वर्णित है। इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है। पद्मपुराण के अनुसार, एक बार पांडवों में भीमसेन ने ऋषि वेदव्यास जी से पूछा, ‘हे भगवन! मैं किसी भी तरह का व्रत नहीं कर सकता। एक दिन तो क्या, एक समय भी मैं खाने-पीने के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट की वृक नाड़ी की वजह से मुझे हमेशा भूख महसूस होती रहती है। इसीलिए, मैं कभी भूखा नहीं रह पाता। बहुत ज्यादा भोजन करने की आदत की वजह से मैं कई अन्य लोगों के हिस्से के भोजन को खाकर पाप का भागीदर बन रहा हूं। हे गुरुवर ! कृपया मुझे इससे मुक्ति दिलाते हुए कल्याण का मार्ग बताएं जिससे मैं कृष्ण तत्व की प्राप्ति कर सकूं। महर्षि व्यासजी ने कुंतीनंदन भीमसेन की चिंता का निवारण करते हुए कहा कि हे वायु पुत्र ! सभी देवों में श्रीकृष्ण श्रेष्ठ हैं, सर्वदेव मचं कृष्णः। इस निर्जला एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता हुआ सीधे विष्णु लोक को जाता है। मनुष्य को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। मानव अवतार के कल्याण हेतु विष्णु लोक की प्राप्ति हेतु सभी 24 एकादशी करनी जरूरी है। बिना व्रत को किए जीव का उद्धार संभव नहीं। भीमसेन इस बात को सुनकर नम्र बन गए। इस उपाय को करने के लिए महर्षि व्यास ने ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की इस एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। महाभारत में लिखा है कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की आयुष्य और आरोग्यता में वृद्धि होती है। जातक आयु पूरी करने के बाद वैकुंठ धाम प्रस्थान करता है। भीमसेन के लिए एकादशी का व्रत करना मुश्किल था। पर महर्षि व्यासजी की आज्ञा से तब इन्होंने व्रत-पूजन और बिना जल के उपवास किया। तभी से भगवान श्रीकृष्ण ने निर्जला एकादशी का नाम “भीम एकादशी” रख दिया। व्रत-उपवास करने से मन संयमित होता है। किसी प्रिय वस्तु का त्याग करने से ही उस वस्तु का मोल समझ में आता है। सच्चे अर्थों में व्रत करने से मनुष्य दीक्षित होकर दक्षता-निपुणता प्राप्त करता है। मन में श्रद्धा का भाव जागृत होता है और ब्रह्म मार्ग की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त होता है। क्या वर्ष 2017 में आप कैरियर में वांछित सफलता प्राप्त कर पाएंगे, इस बारे में जानने के लिए खरीदें कैरियर संभावना रिपोर्ट।
निर्जला एकादशी व्रत विधि
निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले श्रद्घालु को एक दिन पहले ही यानि दशमी तिथि से नियमों का पालना करना शुरू कर देना चाहिए। जिसके तहत सूर्यास्त के बाद अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। वहीं निर्जला एकादशी पर सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन स्नान व आचमन के अलावा जल का उपयोग वर्जित होता है। इसके अलावा इस दिन गरीब या जरूरतमंद को मिठार्इ, अन्न, कपड़े, जूते, मटका, छाता, फल इत्यादि दान किए जाते है। निर्जला एकादशी पर गाै दान का भी विशेष महत्व है। इस दिन अपना मन शांत आैर स्थिर रखना चाहिए। किसी भी प्रकार के बैर आैर परनिंदा से बचें। इस व्रत में अन्न ग्रहण करना वर्जित होता है। लेकिन अगर आप पूरे दिन निराहार ना रह सकें तो आप शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते है। इस दिन रात्रि जागरण करना चाहिए आैर अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे दान-दक्षिणा देने के बाद व्रत खोलना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत-महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत महान पुण्यदायी है। ये व्रत भगवान के प्रति भक्त की अटूट आस्था आैर विश्वास को प्रकट करता है। जो मनुष्य पूरे वर्ष की एकादशी का व्रत ना करके सिर्फ इस एक निर्जला एकादशी का व्रत रखता है उसे पूरे वर्ष की एकादशी के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन ॐ नमः भगवते वासुदेवाय का जाप आैर विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने का भी अत्यधिक महत्व है। वहीं इस शक्कर युक्त जल का घड़ा भर कर आम, खरबूजा, पंखा, छतरी इत्यादि वस्तुआें से असीम पुण्य प्राप्त होता है। कहते है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को मृत्यु के समय मानसिक आैर शारीरिक कष्ट नहीं होता। वर्ष 2017 में आपकी वित्तीय स्थिति कैसी होगी ? इसका जवाब जानने के लिए खरीदें 2017 वित्त रिपोर्ट।
निर्जला एकादशी के शारीरिक लाभ
जैसे कि नाम से ही ख्याल आ जाता है कि इस एकादशी में पानी पीना निषेध है। जैनों के उपवास अथवा दूसरे अन्य धर्मों के न जाने कितने ही उपवासों में पानी पीने की छूट होती है। इसके पीछे भी एक कारण है। वर्षभर में मात्र एक दिन पानी के बगैर रहने से जातक को शारीरिक रूप से काफी फायदा होता है। गर्मी के दिनों में प्यास लगने की वजह से बारंबार पानी पीने का मन होता है। कई बार तो भोजन के दरमियान जरूरत से ज्यादा भी पानी पी जाते हैं। इसलिए, भोजन को पचाने वाले रस के मंद पड़ जाने से पाचनशक्ति भी मंद पड़ जाती है। मूत्र पिंडों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से इनकी कार्यवाहियों में अवरोध आ जाता है। एेसी स्थिति में यदि एक पूरा दिन हम अगर पानी के बगैर व्यत्तीत करें तो इससे शरीर के सभी तंत्रों को थोड़ा विराम मिल जाता है।
निर्जला एकादशी के शुभ व पावन अवसर पर शेषशायी भगवान विष्णु आप सभी की मनोकामनाएं पूरी करें।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
धर्मेश जोशी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम
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