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चैत्र नवरात्रि 2025: जानें नवरात्रि के महत्व के बारे में

चैत्र नवरात्रि 2024: जानें नवरात्रि के महत्व के बारे में

हिन्दूधर्म में नवरात्रि मां दुर्गा के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट करने वाला पर्व है। जिसमें माता के भक्त नौ दिनों तक तप,जप जैसे विभिन्न अनुष्ठानों से माता को प्रसन्न कर उनसे आशीर्वाद मांगते है। वैसे तो साल में चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ महीनों में चार बार नवरात्रि आती है। लेकिन इनमें चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि को प्रमुख माना जाता है। जिसमें माता के भक्त प्रतिपदा से नवमी तक माता के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना करते है। चैत्र नवरात्रि की बात करें तो ये इस बार 30 मार्च से शुरू होंगे और 7 अप्रेल को खत्म होंगे। चैत्र नवरात्रा के साथ ही हिन्दू संवत्सर प्रारंभ होने जा रहा है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। तो आइए जानते है नवरात्रि में मां की पूजा के विधान के बारे मेंः

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चैत्र नवरात्रा से ही नववर्ष के पंचांग की गणना प्रारंभ होती है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो चैत्र नवरात्रा के पहले दिन मां आद्यशक्ति अवतरित हुई थी और देवी के कहने पर ही ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण करना शुरू किया था। यही कारण है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू होता है। ऐसी भी मान्यता है चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लिया और पृथ्वी की स्थापना की। इसके बाद भगवान विष्णु का अवतार यानि श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रा में ही हुआ था।

नवरात्रि में कलश स्थापना कर नाै दिनों तक अखंड ज्योत जलाते है। नवरात्रि पर नियमित रूप से दुर्गा सप्तशती के पाठ का भी विधान है।


ज्योतिषशास्त्र में भी चैत्र नवरात्रा को विशेष माना गया है क्यूंकि इस नवरात्रा से ही सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्यदेव १२ राशियों में भ्रमण पूरा करते है और उसके बाद फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि यानि मेष राशि में प्रवेश करते है। मेष राशि का स्वामी मंगल है और सूर्य की उच्च राशि है जो कि अग्नि तत्व की राशि है ऐसे में इनका संयोग गर्मी की शुरूआत का सूचक है।

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नवरात्रि का महत्व सिर्फ धर्म या ज्योतिष से ही जुड़ा नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा में एक साल की चार संधियां होती है जिसमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्रा आते है। इस समय रोगाणुओं के आक्रमण की अत्यधिक संभावना रहती है। ऐसे में इस समय स्वस्थ रहने तथा शरीर को शुद्घ रखने की प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है।

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30 मार्च, 2025: नवरात्रा के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनकी उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

31 मार्च, 2025: नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रहमचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रहम का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी यानि आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रहमचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्घि होती है।

1 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघटा की पूजा का विधान है। इनके घंटे की ध्वनि हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती है। इनकी कृपा से समस्त पापों और बाधाओं का नाश होता है। प्रसिद्घि और सम्मान के लिए इस मंत्र का जाप करें:

2 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की उपासना की जाती है। इनकी पूजा से सिद्घियाें की प्राप्ति एवं आयु-यश में वृद्घि होती है। मुश्किलों से बाहर आने, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्घि के लिए इस मंत्र का जाप करें:

3 अप्रैल, 2025: पांचवें दिन स्कंदमाता को पूजा जाता है। कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी कृपा से ज्ञान-प्राप्ति होती है। इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस मंत्र का जाप करें:

4 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के छठें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनकी कृपा से रोग,शोक, संताप नष्ट होते है।

5 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। ये माता का सबसे भयंकर रूप है लेकिन इनकी पूजा सदैव शुभ फल देती है, इनके स्मरण से भक्त भयमुक्त हो जाता है। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली है।

6 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के आठवें दिन जिनकी उपासना की जाती है वो है महागौरी। इनकी पूजा-अर्चना से भक्तों से सभी पाप धुल हो जाते है।

7 अप्रैल, 2025: नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्घिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन सच्चे मन से मां की पूजा-अर्चना करने से भक्त को सभी सिद्घियों की प्राप्ति होती है।

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नवरात्रि के दिन सुबह ब्रहम मुहूर्त में उठकर शुद्घ जल से स्नान करें। इसके बाद घर के किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिटटी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोए। वेदी के पास धरती मां का पूजन कर वहां कलश स्थापित करें। जिसके बाद सबसे पहले प्रथमपूज्य श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद वेदी के किनारे पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देवी मां की प्रतिमा स्थापित करें। मां दुर्गा की कुंकुंम, चावल, पुष्प, इत्र इत्यादि से विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
इन बातों का रखें विशेष ध्यानः

1. नवरात्रि में मिटटी, पीतल, तांबा, चांदी या सोने का ही कलश स्थापित करें, लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग बिल्कुल ना करें।
2. नवरात्रा के दौरान ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए।
3. व्रत करने वाले भक्त को जमीन पर सोना चाहिए और केवल फलाहार करें।
4. नवरात्रि में क्रोध, मोह, लोभ जैसे दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए।
5. अगर सूतक हो तो घट स्थापना ना करें और यदि नवरात्रा के बीच में सूतक हो जाए तो कोई दोष नहीं होता।
6. नवरात्रि का व्रत करने वाले भक्तों को कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम