होम » भविष्यवाणियों » त्योहार » जानें श्रावण मास में शिव पूजन की विधि और महत्व के बारे में

जानें श्रावण मास में शिव पूजन की विधि और महत्व के बारे में

जानें श्रावण मास में शिव पूजन की विधि आैर महत्व के बारे में

हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण पांचवा महीना है जिसकी शुरूआत चैत्र मास से होती है। श्रावण मास को वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस माह का हर दिन पवित्र होता है। श्रावण का महीना भगवान शिव और विष्णु का आशीर्वाद लेकर आता है। महादेव के भक्तों के लिए यह महीना काफी महत्व रखता है। “शिव” का अर्थ होता है कल्याण। पंचदेव के पूजन में भगवान शिव मुख्य देवता कहलाते हैं। शिव महिमा के स्तोत्र में पुष्पदंत ने इनकी महिमा का वर्णन विशद रूप से किया है। पुष्पदंत कहते हैं कि इनको अजन्मा होने पर भी अपनी शक्ति के बल पर मानवता के निर्माता, पोषणकर्ता और संहारक का पद प्राप्त हुआ है। हर प्राणी के अस्तित्व के पीछे भी यही हैं। तो आइए जानते है श्रावण माह से जुड़े रोचक पहलूः

सावन माह का महत्वः

दरअसल दक्ष पुत्री सती ने अपने जीवन को त्याग कर दोबारा हिमालय राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी कि इसके लिए उन्होंने पूरे श्रावण माह में कठोरतप किया। पार्वती की भक्ति से शिवजी प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या के पुनः मिलन के कारण शिवजी को श्रावण मास अत्यंत प्रिय है। वर्ष 2025 में ये माह 11 जुलाई से प्रारंभ हो चुका है। श्रावण मास में शिवलिंग की पूजा-अर्चना, रूद्राभिषेक और रात्रि जागरण जैसे धार्मिक अनुष्ठानों से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद मांगा जाता है। इस माह में किसी भी प्रकार से धर्म विरूद्घ कर्म वर्जित होते है।

सावन के सोमवार का महत्वः

सोमवार का प्रतिनिधि ग्रह चंद्रमा है, जो कि मन का कारक है। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजित है। भोलेबाबा स्वयं साधक और भक्त के मन को नियंत्रित करते है। यही कारण है कि सोमवार का दिन शिवजी की पूजा के लिए विशेष माना जाता है। जिसमें सावन के सोमवार पर शिवलिंग की पूजा करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन स्त्री, पुरूष तथा खासकर कुंवारी लड़कियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखती है। आपके जीवन की विस्तृत भविष्यवाणी रिपोर्ट से जानें अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में घटित होने वाली घटनाआें के बारे में।

तो अाइए अब जानते है देवों के देव महादेव का पूजन कैसे करेंः

पूजन सामग्रीः गंगाजल, अक्षत (चावल), पुष्प, बील्वपत्र, पंचामृत (दूध,दही,शहद,घी,चीनी), नाडाछड़ी (कलावा, रंगीन धागा), यज्ञोपवीत, फल, मिठार्इ, अगरबत्ती, धूप

पूजाविधिः शिवजी के पूजन के समय शुद्ध आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठे। उसके बाद आप दाहिने हाथ में जल लेकर मन में इच्छित संकल्प करें। फिर आप शिवजी का ध्यान करें। फिर शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराएं । इसके पश्चात आपके पास जो पंचामृत है वह शिवलिंग पर अर्पण करते समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें। फिर शुद्धजल से स्नान करवा के अक्षत अर्पण करें। उसके बाद नाडाछड़ी ओर यज्ञोपवित्र अर्पण करें, फिर बिल्वपत्र चढ़ाएँ और फिर धूप, अगरबत्ती कर मिठाई का भोग लगाकर क्षमायाचना करें।

भगवान शिव की पूजा के लाभ

– शिवजी का अभिषेक करने से आत्मशुब्धि होती है ।- शिवलिंग को गंध से स्नान कराने से पुत्र की प्राप्ति होती है । – शिवजी को नैवेध अर्पित करने से आयुष्य में वृद्धि होती है और तृप्ति होती है । – शिवजी के आगे दीपक जलाने से ज्ञान की प्राप्ति होती है । – शिवजी को तांबुल (पान) अर्पित करने से भोग की प्राप्ति होती है । – शिवलिंग का दूध से अभिषेक करने से मन की शांति प्राप्त होती है । – शिवलिंग का दही से अभिषेक करने से वाहन सुख और पशुधन में वृद्धि होती है । – शिवलिंग का मध- घी गन्ने के रस का अभिषेक करने से लक्ष्मी और धन सुख में वृद्धि होती है।- शिवलिंग का दर्भ के जल से अभिषेक करने से व्याधि की निवृत्ति होती है । – शिवजी को गंगाजल से स्नान कराने से मोक्ष प्राप्त होता है। – शिवजी को भांग चढ़ाने से विजय की प्राप्ति होती है और इच्छित मनोकामना पूर्ण होती है।

शिव पूजा में कोई ऐसी चीजें होती है जो आपको फल देने की बजाय नुकसान पहुंचा सकती है। आइए उन चीजों के बारे में जानते हैः

सिंदूर या कुमकुमः
शिवपूजा में शास्त्रों में शिवलिंग पर कुमकुम और रोली चढ़ाना निषेध माना गया है। क्यूंकि महादेव त्रिदेवों में विनाशक है। जबकि भोलेनाथ वैरागी है ऐसे में संहारकर्ता की सिंदूर से पूजा करना अशुभ माना जाता हैै। बल्कि चंदन से उनकी पूजा की जाती है।

तुलसीः
यूं तो तुलसी अत्यधिक पवित्र मानी जाती है लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान शिव पर तुलसी चढ़ाना मना है। दरअसल ऐसी मान्यताएं है कि शिवजी ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था, ऐसे में तुलसी शिवजी को नहीं चढ़ार्इ जाती। वहीं दूसरी बात ये भी सामने आती है कि भगवान विष्णु ने तुलसी को पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस कारण तुलसी दल शिव को अर्पित नहीं किया जाता।

शंखः
भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण शिव को शंख से जल अर्पित नहीं किया जाता।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
धर्मेश जोशी

गणेशास्पीक्स डाॅटकाॅम टीम

त्वरित समाधान के लिए ज्योतिषी से बात कीजिए।

Exit mobile version