सनातन धर्म ग्रन्थों में प्रदोष व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है, प्रदोष का व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। हर महीने में दो बार आने वाले प्रदोष के व्रत को लेकर पौराणिक धर्म ग्रन्थ और धार्मिक साहित्य में कई तरह के फलों का उल्लेख मिलता है। चंद्र मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि को प्रदोष मनाया जाता है। हालांकि कई लोग शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की प्रदोष में अंतर करते है। लेकिन बात पर सभी सहमत है कि इस दिन नियम अनुसार व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करने से कई तरह की दु:ख तकलीफों से मुक्ति मिलती है।
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प्रदोष व्रत में कब करें पूजा?
2025 में प्रदोष व्रत में पूजा के समय को लेकर कई तरह की भ्रांति या असमंजस देखने को मिलता है। लेकिन शास्त्र संमंत समय की बात करें तो प्रदोष का व्रत करने वाले लोगों के लिए पूजा का सबसे उत्तम समय वह है, जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय आती है। जिसे त्रयोदशी और प्रदोष का अधिव्यापन भी कहते हैं। प्रदोष व्रती के लिए इस समय पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन और विशेष कर इस समय के दौरान शिव भगवान सबसे प्रसन्नचित रहते हैं। आगे जानिए 2025 में कब है प्रदोष तिथि
प्रदोष व्रत दिवस का नाम, महत्व और लाभ
- जब प्रदोष रविवार को पड़ता है तो इसे ‘भानु प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह एक सुखी, शांतिपूर्ण और लंबे जीवन के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष सोमवार को होता है तो इसे ‘सोम प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह वांछित परिणाम और सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष मंगलवार को होता है तो इसे ‘भौम प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने और समृद्धि के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष बुधवार को होता है तो इसे ‘सौम्यवार प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष गुरुवार को होता है तो इसे ‘गुरुवार प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह पूर्वजों से आशीर्वाद, दुश्मनों और संकटों से बचने के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष शुक्रवार को होता है तो इसे ‘भृगुवार प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह धन, संपत्ति, सौभाग्य और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- जब प्रदोष शनिवार को होता है तो इसे ‘शनि प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। यह नौकरी में प्रमोशन और करियर में प्रगति पाने के लिए किया जाता है।
इसका अर्थ यह है कि जिस वार को प्रदोष तिथि होती है, व्रत उस वार के अनुसार मनाया जाता है।
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प्रदोष पूजा की सामग्री
प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा के लिए आपको कुछ सामान्य चीजों को एकत्र करना होगा जो इस प्रकार है। आरती की थाली, धूप, दीप और कपूर, सफेद फूल और माला यदि आंकड़े के फूल उपलब्ध हो तो उत्तम है। सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, कलश, बेलपत्र व धतूरा, शुद्ध घी यदि गाय का घी उपलब्ध हो तो उत्तम, सफेद वस्त्र और हवन समाग्री।
प्रदोष पूजा विधि
2025 में प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए आपको इस दिन व्रत धारण करना चाहिए। अन्न के साथ अति संभव हो तो निर्जल व्रत धारण करें। प्रदोष पूजा के लिए उपयुक्त समय का चयन करें, पूजा के सबसे उपयुक्त समय त्रयोदशी और प्रदोष का सही समय माना गया है।
– इस दिन सांय काल को एक बार पुनः स्नान करें और भगवान शिव का षोडषोपचार के साथ पूजन करें।
– भोग – षोडशोपचार के बाद नैवेद्य का भोग लगाएं जिसमें जौ का सत्तू और घी व शक्कर को शामिल करें। इसके बाद आठों दिशाओं का आह्वान कर 8 दीपक जलाकर प्रत्येक दिशा में स्थापित करें और उन्हें आठ बार नमस्कार करें।
– इसके बाद शिव प्रिया माता पार्वती का ध्यान करें और उसके बाद शिव के प्रिय गण नंदी की प्रार्थना करें।
– पूजा पूरी होने के बाद भगवान शिव को याद करें और आंखें बाद कर उनका ध्यान करें। इसी दौरान शिव पंचाक्षर मंत्र ‘ओम नमः शिवाय‘ का जाप करें।
2025 में प्रदोष तिथि
तारीख | समय | प्रदोष व्रत का नाम | प्रदोष पूजा मुहूर्त |
---|---|---|---|
11 जनवरी 2025, शनिवार | प्रारंभ – 08:21, 11 जनवरी समाप्त – 06:33, 12 जनवरी | शनि प्रदोष व्रत | 17:43 से 20:26 तक |
27 जनवरी 2025, सोमवार | आरंभ – 20:54, 26 जनवरी समाप्त – 20:34, जनवरी 27 | सोम प्रदोष व्रत | 17:56 से 20:34 तक |
9 फ़रवरी 2025, रविवार | आरंभ – 19:25, फ़रवरी 09 समाप्त – 18:57, फ़रवरी 10 | रवि प्रदोष व्रत | 19:25 से 20:42 तक |
25 फ़रवरी 2025, मंगलवार | आरंभ – 12:47, 25 फरवरी समाप्त – 11:08, फरवरी 26 | भौम प्रदोष व्रत | 18:18 से 20:49 तक |
11 मार्च 2025, मंगलवार | प्रारंभ – 08:13, 11 मार्च समाप्त – 09:11, मार्च 12 | भौम प्रदोष व्रत | 18:27 से 20:53 तक |
27 मार्च 2025, गुरूवार | आरंभ – 01:42, मार्च 27 समाप्त – 23:03, 27 मार्च | गुरु प्रदोष व्रत | 18:36 से 20:56 तक |
10 अप्रैल 2025, गुरुवार | आरंभ – 22:55, अप्रैल 09 समाप्त – 01:00, अप्रैल 11 | गुरु प्रदोष व्रत | 18:44 से 20:59 तक |
25 अप्रैल, 2025, शुक्रवार | आरंभ – 11:44, 25 अप्रैल समाप्त – 08:27, अप्रैल 26 | शुक्र प्रदोष व्रत | 18:53 से 21:03 तक |
9 मई 2025, शुक्रवार | आरंभ – 14:56, 09 मई समाप्त – 17:29, 10 मई | शुक्र प्रदोष व्रत | 19:01 से 21:08 तक |
24 मई 2025, शनिवार | आरंभ – 19:20, 24 मई समाप्त – 15:51, 25 मई | शनि प्रदोष व्रत | 19:20 से 21:13 तक |
8 जून 2025, रविवार | आरंभ – 07:17, जून 08 समाप्त – 09:35, जून 09 | रवि प्रदोष व्रत | 19:18 से 21:19 तक |
23 जून 2025, सोमवार | आरंभ – 01:21, 23 जून समाप्त – 22:09, 23 जून | सोम प्रदोष व्रत | 19:22 से 21:23 तक |
8 जुलाई 2025, मंगलवार | आरंभ – 23:10, जुलाई 07 समाप्त – 00:38, जुलाई 09 | भौम प्रदोष व्रत | 19:23 से 21:24 तक |
22 जुलाई 2025, मंगलवार | प्रारंभ – 07:05, 22 जुलाई समाप्त – 04:39, जुलाई 23 | भौम प्रदोष व्रत | 19:18 से 21:22 तक |
6 अगस्त 2025, बुधवार | आरंभ – 14:08, अगस्त 06 समाप्त – 14:27, अगस्त 07 | बुध प्रदोष व्रत | 19:08 से 21:16 तक |
20 अगस्त 2025, बुधवार | आरंभ – 13:58, अगस्त 20 समाप्त – 12:44, 21 अगस्त | बुध प्रदोष व्रत | 18:56 से 21:07 तक |
5 सितम्बर 2025, शुक्रवार | प्रारम्भ – 04:08, सितम्बर 05 समाप्त – 03:12, सितम्बर 06 | शुक्र प्रदोष व्रत | 18:38 से 20:55 तक |
19 सितम्बर 2025, शुक्रवार | आरंभ – 23:24, 18 सितंबर समाप्त – 23:36, सितम्बर 19 | शुक्र प्रदोष व्रत | 18:21 से 20:43 तक |
4 अक्टूबर 2025, शनिवार | आरंभ – 17:09, अक्टूबर 04 समाप्त – 15:03, अक्टूबर 05 | शनि प्रदोष व्रत | 18:03 से 20:30 तक |
18 अक्टूबर 2025, शनिवार | आरंभ – 12:18, 18 अक्टूबर समाप्त – 13:51, अक्टूबर 19 | शनि प्रदोष व्रत | 17:48 से 20:20 तक |
3 नवंबर 2025, सोमवार | आरंभ – 05:07, 03 नवंबर समाप्त – 02:05, 04 नवंबर | सोम प्रदोष व्रत | 17:34 से 20:11 तक |
17 नवंबर 2025, सोमवार | आरंभ – 04:47, 17 नवंबर समाप्त – 07:12, नवंबर 18 | सोम प्रदोष व्रत | 17:27 से 20:07 तक |
2 दिसंबर 2025, मंगलवार | आरंभ – 15:57, 02 दिसंबर समाप्त – 12:25, दिसम्बर 03 | भौम प्रदोष व्रत | 17:24 से 20:07 तक |
17 दिसंबर 2025, बुधवार | आरंभ – 23:57, 16 दिसंबर समाप्त – 02:32, दिसम्बर 18 | बुध प्रदोष व्रत | 17:27 से 20:11 तक |
प्रदोष व्रत कथा
एक राजकुमार की असहनीय पीड़ा प्राचीन काल की बात है, किसी गाँव में एक गरीब पुजारी रहता था। किसी कारण वश उस पुजारी की मृत्यु हो गयी। उस पुजारी की मृत्यु के बाद, उसकी विधवा पत्नी और बेटा घर-घर जाकर भिक्षा माँगते थे, और शाम को घर लौट आते थे। कुछ इसी तरह में अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे थे। एक दिन, उस विधवा की भेंट विदर्भ क्षेत्र के राजकुमार से हुई। वह राजकुमार भी अपने पिता की मृत्यु के बाद से ही वहाँ भटक रहा था। पुजारी की विधवा ने राजकुमार की पीड़ा को समझा और उसे इस स्थिति में देख कर दुखी हो गयी। इसलिए वह उसे अपने घर ले आई और अपने बेटे की तरह ही उसकी देखभाल करने लगी। शांडिल्य ऋषि ने बताया कि कैसे भगवान शिव ने प्रदोष व्रत का पालन किया: कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद एक दिन, विधवा अपने दोनों बेटों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में पहुंची। वहाँ उसने शांडिल्य ऋषि से शिव के प्रदोष व्रत की कथा, अनुष्ठान और उपवास के बारे में सुना। घर लौटने के बाद वह भी प्रदोष व्रत का पालन करने लगी। धार्मिक अनुष्ठान करने से हमें देवताओं से शक्ति और आशीर्वाद मिलता है। ज्योतिष की सहायता से हम ईश्वरीय कृपा भी प्राप्त कर सकते हैं।
जब राजकुमार का सामना गंधर्व लड़कियों से हुआ कुछ समय के बाद विधवा के दोनों बच्चे जंगल में खेल रहे थे, उसी समय उनका सामना कुछ गंधर्व लड़कियों से हुआ। तो राजकुमार उन लड़कियों से बात करने लगा जबकि पुजारी का बेटा घर लौट आया। उन लड़कियों में से एक लड़की का एक नाम अंशुमती था। उस दिन राजकुमार देर से घर लौटा।
जब विदर्भ के राजकुमार को पहचान लिया गया अगले दिन, राजकुमार पुनः उसी स्थान पर गया, और देखा कि अंशुमती अपने माता-पिता से वार्तालाप कर रही थी। उसने राजकुमार को पहचान लिया था और बताया कि वह विदर्भ नगर का राजकुमार है, और उसका नाम धर्म गुप्त है। अंशुमती के माता-पिता ने राजकुमार को पसंद किया और कहा कि भगवान शिव की कृपा से वे अपनी बेटी की शादी उसके साथ करना चाहते हैं, और उससे पूछा कि क्या वह तैयार हैं?
विदर्भ के राजकुमार ने गंधर्व कुमारी अंशुमती से विवाह किया राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दी और विवाह संपन्न हुआ। बाद में, राजकुमार ने गंधर्वों की एक विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया। भयंकर युद्ध हुआ और उसने वो युद्ध जीत कर विदर्भ पर शासन करने लगा। बाद में, वह पुजारी की विधवा और उसके बेटे को भी सम्मान के साथ अपने महल में ले आया। इसलिए, उनके सभी दुःख और दरिद्रता समाप्त हो गई और वे खुशी से रहने लगे। जिसका श्रेय प्रदोष व्रत को दिया गया।
प्रदोष व्रत का महत्व: उसी दिन से, लोगों में प्रदोष व्रत का महत्व और लोकप्रियता बढ़ गई और लोगों ने परंपराओं के अनुसार प्रदोष व्रत का पालन शुरू कर दिया।
प्रदोष व्रत विधि, उपाय और मंत्र
- त्रयोदशी के दिन स्नान के करके स्वच्छ, सफेद वस्त्र धारण।
- फिर भगवान के आसान को रंगीन कपड़ों से सजाएं।
- चौकी पर भगवान गणेश, शिव-पार्वती की मूर्ति रखें और विधि अनुसार उनकी पूजा करें।
- भगवान को नैवेद्य अर्पित करें और हवन करें।
- परंपरा अनुसार प्रदोष व्रत हवन करते समय कम से कम 108 बार “ओउम उमा साहित शिवाय नम:” मंत्र का जाप करें।
- श्रद्धा अनुसार अधिक से अधिक आहुति दें और पूरी श्रद्धा के साथ आरती करें।
- तत्पश्चात् एक पुजारी को भोजन कराएं, और उसे कुछ दान करें।
- अपने पूरे परिवार के साथ भगवान शिव और पुजारी का आशीर्वाद लें और सभी के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम