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पोंगल फेस्टिवल 2025 : पोंगल का महत्व एवं धार्मिक आयोजन

पोंगल फेस्टिवल 2019 : पोंगल का महत्व एवं धार्मिक अायोजन

पोंगल दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रप्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। जिस तरह सूर्य देव के उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, ठीक उसी तरह दक्षिण भारत में पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। यह विशेष रूप से किसानों का पर्व है और धान की फसल कटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। यह पर्व जनवरी माह के मध्य में पड़ने वाले तमिल माह ’तइ’ की पहली तारीख को मनाया जाता है। उसी दिन से तमिल नववर्ष की भी शुरुआत होती है। इस दौरान जलीकट्टू का भी आयोजन होता है।

बेहतर फसल के लिए इंद्रदेव के प्रति प्रकट करते हैं आभार

तीन दिनों तक चलने वाला पोंगल पर्व सूर्य और इंद्र देव को समर्पित है। इस पर्व के जरिए लोग अच्छी बारिश, उपजाऊ भूमि और बेहतर फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है और दूसरे दिन माता लक्ष्मी और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल पर्व तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका और कनाडा के साथ ही दुनिया के सभी हिस्से में रहने वाले तमिल भाषी उत्साह के साथ मनाते हैं।

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पोंगल का महत्व और धार्मिक आयोजन

1. पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद्र को समर्पित होता है। इसे भोगी पोंगल कहते हैं। अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा करने के साथ ही खेतों में हरियाली और जीवन में समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं। इस दौरान महिलाएं लोक गीत पर नृत्य भी करती हैं।

2. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है। इस दिन पोंगल नामक विशेष व्यंजन भी बनाया जाता है। इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है। खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। 3. पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानी मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है। इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैलों की रेस यानि जलीकट्टू का आयोजन भी होता है। जलीकट्टू करीब 2000 साल पुराना खेल है, जिसमें इंसान और बैल की भीड़ंत होती है। मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं।

4. पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है। दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं। एक-दूसरे को बधाई और मिठाई भी दी जाती है।

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थाई पोंगल संक्रांति मुहूर्त

14 जनवरी, 2025 (मंगलवार)
संक्रांति पल : 09:03, जनवरी 14, 2025 को

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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