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महावीर जयंती 2025: जानें महावीर स्वामी के जन्म और शिक्षाओं से जुड़ी दिलचस्प बातें

महावीर जयंती 2023: जानें महावीर स्वामी के जन्म आैर शिक्षाआें से जुड़ी दिलचस्प बातें

सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी की जयंती चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाई जाती है। महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के रूप में पहचाने वाला जैन धर्म के लिए ये सबसे प्रमुख पर्व है। भगवान महावीर का जन्म एक साधारण बालक के रूप में हुआ था, जिन्होंने अपनी कठिन तपस्या से बहुत कम उम्र में ही कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें अर्हत, वर्धमान, सन्मति और श्रमण इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण वे जितेन्द्रिय कहलाए। आइए जानते है महावीर स्वामी और महावीर जयंती से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलूः

महावीर जयंती 2025 तारीखः 10 अप्रेल, गुरुवार

महावीर स्वामी जीवन परिचयः

भगवान महावीर का जन्म वैशाली के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सिद्घार्थ और मां का नाम रानी त्रिशला था। ऐसा कहा जाता है महावीर स्वामी के जन्म से पहले उनकी मां को सोलह स्वप्न दिखाए दिए थे। जिन्हें उन्हें हाथी,सांड,शेर,लक्ष्मी,दो माला,सूरज,पूर्ण चंद्रमा,मछली युगल,दाे कलश,समुद्र इत्यादि चीजें दिखाई दी थी। इनके बचपन का नाम वर्धमान था। वे बचपन से ही तेजस्वी और साहसी थे। इनका विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ हुआ था। माता-पिता की मृत्यु के बाद 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने वैराग्य ले लिया। बारह वर्ष की कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर साल्व वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। उनके दिए उपदेश चारों और फैलने लगे। तीस सालों तक महावीर स्वामी ने जनमानस तक त्याग, अहिंसा और प्रेम का संदेश फैलाया, जिसके बाद वे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर बन गए। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी को जाता है। बिहार के पावापुरी में कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को उन्होंने देह त्याग किया। उस समय वे 72 वर्ष के थे।

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महावीर जयंती का उत्सवः

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाए जानी वाली महावीर जयंती के अवसर पर जैन मंदिरों में विशेष अनुष्ठान होते है। वहीं जैन मंदिरों को आकर्षक रोशनी और फूलों से सजाया जाता है। महावीर जयंती पर जैन मंदिरों के शिखरों पर ध्वजा चढ़ार्इ जाती है। इस मौके श्रद्घालु भगवान महावीर की मूर्ति का वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अभिषेक करते है। जिसके बाद श्रद्घालु पुष्प, अक्षत, जल, फल और सुगंधित चीजें अर्पित करते है। इस अवसर पर जैन समुदाय की और से प्रभातफेरी और भव्य जुलूस भी निकाला जाता है। जिसमें महावीर स्वामी की मूर्ति को पालकी में बिठाकर जयकारों के बीच शहरभर में घूमाया जाता है। इस जुलूस का विभिन्न स्थानों पर पुष्पवर्षा के साथ स्वागत किया जाता है। इसके अलावा भी कई धार्मिक कार्यक्रम होते है जिनमें जैन संतों के प्रवचन भी शामिल होते है। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। कहते है कि इस दिन जरूरतमंदों काे किया गया दान विशेष फलदायी होता है।

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महावीर स्वामी की शिक्षाएंः

महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से जनमानस को सही राह दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति और छः जरूरी नियमों का विस्तार से उल्लेख किया। जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए। जिनमें सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पंचशील कहा जाता है। भगवान महावीर के अनुसार सत्य इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली है, हर परिस्थिति में इंसान को सच बोलना चाहिए। वहीं उन्होंने खुद के समान ही दूसरों से प्रेम करने का संदेश दिया। उन्होंने संतुष्टि की भावना मनुष्य के लिए अति आवश्यक बताई। जबकि ब्रह्मचर्य का पालन मोक्ष प्रदान करने वाला बताया। उनका कहना था कि ये दुनिया नश्वर है चीजों के प्रति अत्यधिक मोह की आपके दुखों का कारण है। वो कहते थे कि सभी इंसान को उसके कर्मों का फल मिलता है।

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महावीर स्वामी के देह त्यागने के पश्चात जैन धर्म मुख्य रूप से दो सम्प्रदाय दिगम्बर जैन और श्वेताम्बर जैन के रूप में बंट गया। इनमें दिगम्बर जैन मुनियों के लिए नग्न रहना आवश्यक है जबकि श्वेताम्बर जैन मुनि सफेद वस्त्र धारण करते है। यूं देखा जाए तो दर्शन, कला और साहित्य के क्षेत्र में जैन धर्म का अहम योगदान है। जिनमें अहिंसा का सिद्घांत जैन धर्म की मुख्य देन है। महावीर स्वामी ने ही लोगों को ‘जियो और जीने दो’ का मूल मंत्र दिया।

गणेशास्पीक्स टीम की और से आप सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅटकाॅम टीम