मां शैलपुत्री देवी के नौ अवतारों में से सबसे पहला रूप है। शैल संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है पर्वत और पुत्री यानि बेटी। इसका पूरा अर्थ हुआ हिमालय की पुत्री। देवी दुर्गा को इस नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि उन्होंने पर्वतराज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इन्हें नवरात्रि के प्रथम दिन प्रतिपदा को पूजा जाता है। चैत्र नवरात्रि में 30 मार्च और शारदीय नवरात्रि में 22 सितंबर 2025 को इनकी पूजा की जाएगी।
मां शैलपुत्री ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शक्तियों का प्रतीक है
मां शैलपुत्री बैल पर विराजित है और उनके दाहिने हाथ में शूल है और बाएं हाथ में बहुत सारे फूल है। मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन होती है। पूर्व जन्म में माता शैलपुत्री दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी। जो कि बचपन से ही भगवान शिव को समर्पित थी। जिसके बाद, सती का भगवान शिव के साथ विवाह हुआ। मां शैलपुत्री के पास कई दिव्य शक्तियां है।
माता शैलपुत्री आपको निम्न अनुभव प्राप्त करने में मदद कर सकती है।
जिंदगी में पूर्णता
मां शैलपुत्री के पास कई दिव्य शक्तियां है। नवरात्रि के पहले दिन ध्यान लगाते समय, श्रद्धालु को मूलाधार चक्र पर फोकस करना चाहिए। यही से नवरात्रि साधना की यात्रा शुरू होती है। ये देवी सभी भौतिक इच्छाओं को पूरा करती है और इससे आप अपनी जिंदगी में पूर्णता का अनुभव कर सकते है। नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालु को मूलाधार चक्र पर मन केन्द्रित रखने की जरूरत है। ये भक्त की आध्यात्मिक यात्रा के प्रारंभिक बिंदु को दर्शाता है। माँ दुर्गा के आशीर्वाद पाने के लिए आज ही मेरु पृष्ठ श्री यन्त्र ख़रीदे|
मां शैलपुत्री का मंत्र और उनसे जुड़े अन्य तथ्य
मां शैलपुत्री का ध्यानः
नवरात्रि के पहले दिन के लिए मंत्रः ओम शं शैलपुत्रये नमः। इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
पहले दिन का रंग
चैत्र नवरात्रि – स्लेटी
शारदीय नवरात्रि – सफेद
पहले दिन का प्रसाद
केला, शुद्ध घी और शक्कर या हलवा
नौ दिनों का उत्सव
नवरात्रि के दौरान घटस्थापना सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। यह नौ दिनों के इस पर्व की शुरुआत का प्रतीक है। हमारे शास्त्रों में घटस्थापना से जुड़े निर्धारित नियम और दिशा-निर्देश है। जो कि आद्यशक्ति की पूजा-अर्चना के संबंध में है लेकिन ये अमावस्या और रात्रि के समय निषिद्ध है। इसे नवरात्रि के पहले दिन उपयुक्त मुहूर्त में किया जाना चाहिए।
घटस्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का पहला चरण होता है। अगर किसी कारण से इस समय घटस्थापना करना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना की जा सकती है। चित्रा और वैधृति योग में घटस्थापना ना करने की सलाह दी जाती है।
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