आओ, नूतन वर्ष मना लें!
गृह-विहीन बन वन-प्रयास का
तप्त आंसुओं, तप्त श्वास का,
एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें
आओ, नूतन वर्ष मना लें।।
हरिवंश राय बच्चन की ये सुंदर कविता गुड़ी पड़वा के अवसर पर लोगों में नया जोश व उमंग भरती है। गुड़ी पड़वा के दिन से हिंदुओं के नए साल की शुरूआत होती है। गुड़ी का अर्थ होता है ‘विजय पताका‘। मान्यता है कि इस दिन शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण कर उनमें सिद्ध मंत्रों द्वारा प्राण फूंक दिए थे। इसके बाद इस सेना ने युद्घ में दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए विजय हासिल की। इसी विजय के प्रतीक के रूप में ‘शालिवाहन शक’ की शुरूआत मानी गई। ये पर्व आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’ के नाम से धूमधाम से मनाया जाता है।
हिन्दू नव वर्ष के शुरू होने का प्रतीक है गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा का पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष के आरंभ की ख़ुशी में मनाया जाता है। यह त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होने वाले नए साल की शुरुआत के दिन ही मनाने की परंपरा है। गुड़ी पड़वा का पर्व महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गुड़ी का मतलब ध्वज यानि झंडा और पड़वा यानी प्रतिपदा तिथि होती है। मान्यता है के इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है।
वर्ष 2021 में गुड़ी पड़वा त्यौहार
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार गुड़ी पड़वा का त्यौहार 13 अप्रेल को चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा की तिथि को है। 13 अप्रेल से ही चैत्र नवरात्रि और हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत हो रही है। सभी युगों में प्रथम सतयुग की शुरुआत भी इसी तिथि से हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी। भारतीय कैलेंडर के मुताबिक चैत्र का महीना साल का पहला महीना होता है।
हिंदू पंचाग की रचना का काल
कहते हैं कि प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने अपने अनुसंधान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना करते हुए भारतीय पंचांग की रचना की।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथा
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया। मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है।
एक अन्य कथा के मुताबिक शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंक दिये और दुश्मनों को पराजित किया। इसी दिन शालिवाहन शक का आरंभ भी माना जाता है। इस दिन लोग आम के पत्तों से घर को सजाते हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उल्लास होता है।
सृष्टि के निर्माण का दिन
कहते है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य शुरू किया था। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। इस दिन नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है। इसे हिंदू कैलेंडर का पहला दिन भी कहते है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि हिन्दू कलैंडर का मतलब क्या है और नया साल तो सभी जगह 1 जनवरी को मनाते है। लेकिन हम आपको बता दें कि 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नव वर्ष पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित है। सृष्टि के निर्माण का ये दिन हरेक भारतीय के लिए अहम है। जिसमें बारह महीने क्रमशः चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन होंगे।
गुड़ी पड़वा का महत्व
स्वास्थ्य के नज़रिये से भी गुड़ी पड़वा का काफी महत्व है। इस दिन बनाए जाने वाले व्यंजन चाहें आंध्र प्रदेश में बनाई जाने वाली पच्चड़ी हो, या फिर महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली पूरन पोली या पोरन पोली, सभी स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं। माना जाता है कि खाली पेट पच्चड़ी के सेवन से चर्म रोग दूर होने के साथ-साथ स्वास्थ्य बेहतर होता है। वहीं पूरन पोली में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का उपयोग होता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद होते हैं। इस दिन लोग सुबह में नीम की पत्तियां भी खाते हैं। माना जाता है कि इससे रक्त शुद्ध होता है।
गुड़ी पड़वा की परंपरा
गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और तोरण द्वार बनाकर सजाते हैं। घर के आगे एक गुड़ी यानि झंडा रखा जाता है। इसके अलावा एक बर्तन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर उसे रखा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करने की भी परंपरा है।
जानिए कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
– प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है।- लोग घरों की सफ़ाई करते हैं। गांवों में गोबर से घर की लिपाई की जाती है।- इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए।- सूर्योदय के तुरंत बाद गुड़ी की पूजा का विधान है। – चटख रंगों से रंगोली बनाने के साथ ही फूलों से घर को सजाया जाता है।- इस दिन आम तौर पर मराठी महिलाएं नौवारी (9 गज लंबी साड़ी) पहनती हैं और पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं।- इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परंपरा है।- गुड़ी पड़वा पर श्रीखंड, पूरन पोली, खीर आदि बनाए जाते हैं।- शाम के समय लोग लेजिम नामक पारंपरिक नृत्य भी करते हैं।
विभिन्न स्थानों में गुड़ी पड़वा
1. गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाते हैं।2. कर्नाटक में यह पर्व युगादी नाम से मनाया जाता है।3. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगादी नाम से जाना जाता है।4. कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं।5. मणिपुर में इस दिन को सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के नाम से जाना जाता है।6. इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है।
क्या है गुड़ी
महाराष्ट्र में गुड़ी लगाया जाता है। इसके लिए एक बांस लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का कलश उलटा कर रखा जाता है और केसरिया रंग या रेशम के कपड़े से इसे सजाया जाता है। इसके बाद गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है। गुड़ी को किसी ऊंचे स्थान पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके। – मान्यता है कि सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने के बाद लोगों ने घरों पर गुड़ी लगाकर खुशी का इजहार किया था।- छत्रपति शिवाजी की विजय की याद में भी गुड़ी लगाया जाता है।- मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है।- कहीं-कहीं भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस आने की खुशी में भी गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है।- मान्यता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।- किसान रबी फसल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं।- हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त काफी शुभ माने जाते हैं, इनमें गुड़ी पड़वा भी एक है। इसके अलावा अक्षय तृतीया और दशहरा को पूर्ण और दिवाली को अर्द्ध मुहूर्त माना जाता है।
पकवानों का भी विशेष महत्व
आंध्र प्रदेश में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पडवा’ के नाम से मनाया जाने वाले इस पर्व पर घरों में विशेष पकवान बनाए जाते है। जिसमें आंध्रप्रदेश में घरों में एक विशेष प्रकार का पेय पदार्थ ‘पच्चड़ी/प्रसादम’ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका निराहार सेवन करने से मनुष्य निरोगी रहता है। इससे चर्मरोग भी दूर होता है। जबकि महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के अवसर पर इस विशेष मौके पर पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है, जो कि गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चे आम के मिश्रण से तैयार होती है। गुड़ मिठास का, तो नीम के फूल कड़वाहट मिटाने, जबकि आम व इमली जीवन के खटटे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।
गुड़ी पड़वा का मुहूर्त
– चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर आरंभ होता है।- यदि प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय के समय पड़ रही हो तो पहले दिन ही गुड़ी पड़वा मनाया जाता है।- यदि सूर्योदय के समय किसी भी दिन प्रतिपदा न हो, तो प्रतिपदा के आरंभ व अंत होने वाले दिन नव-वर्ष मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा पर्व तिथि व मुहूर्त 2021
मराठी विक्रम संवत 1943 शुरू
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 12 अप्रैल 2019 को 08.00 बजेप्रतिपदा तिथि समाप्त – 13 अप्रैल 2019 को 10.16 बजे
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम