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गुड़ी पड़वा 2025: जानें क्यों और कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा त्यौहार !

गुड़ी पड़वा 2023: जानें क्यों आैर कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा त्यौहार !

आओ, नूतन वर्ष मना लें! गृह-विहीन बन वन-प्रयास कातप्त आंसुओं, तप्त श्वास का,एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लेंआओ, नूतन वर्ष मना लें।।

हरिवंश राय बच्चन की ये सुंदर कविता गुड़ी पड़वा के अवसर पर लोगों में नया जोश व उमंग भरती है। गुड़ी पड़वा के दिन से हिंदुओं के नए साल की शुरूआत होती है। गुड़ी का अर्थ होता है ‘विजय पताका‘। मान्यता है कि इस दिन शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण कर उनमें सिद्ध मंत्रों द्वारा प्राण फूंक दिए थे। इसके बाद इस सेना ने युद्घ में दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए विजय हासिल की। इसी विजय के प्रतीक के रूप में ‘शालिवाहन शक’ की शुरूआत मानी गई। ये पर्व आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’ के नाम से धूमधाम से मनाया जाता है।

वर्ष 2025 में गुड़ी पड़वा त्यौहार

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार गुड़ी पड़वा का त्यौहार 30 मार्च को चैत्र मास की शुक्‍ल प्रतिपदा की तिथि को है। 29 मार्च से ही चैत्र नवरात्रि और हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत हो रही है। सभी युगों में प्रथम सतयुग की शुरुआत भी इसी तिथि से हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी। भारतीय कैलेंडर के मुताबिक चैत्र का महीना साल का पहला महीना होता है।

हिंदू पंचाग की रचना का काल

कहते हैं कि प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने अपने अनुसंधान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना करते हुए भारतीय पंचांग की रचना की।

अन्य पौराणिक कथाएं
गुड़ी पड़वा पर्व से जुड़ी कई कथाएं हिन्दू सनातन् धर्म में हैं। इनसे से एक कथा यह भी है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने श्री लंका के शासक बाली पर विजय प्राप्त कर लोगों को उसके अत्याचारों और कुशासन से मुक्ति दिलाई। इसी खुशी में हर घर में गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है। वहीं भगवान श्रीराम और महाराजा युधिष्टिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शकों से भारत भूमि की रक्षा की और इसी दिन से कालगणना प्रारंभ की।

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सृष्टि के निर्माण का दिन

कहते है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य शुरू किया था। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। इस दिन नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है। इसे हिंदू कैलेंडर का पहला दिन भी कहते है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि हिन्दू कलैंडर का मतलब क्या है और नया साल तो सभी जगह 1 जनवरी को मनाते है। लेकिन हम आपको बता दें कि 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नव वर्ष पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित है। सृष्टि के निर्माण का ये दिन हरेक भारतीय के लिए अहम है। जिसमें बारह महीने क्रमशः चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन होंगे।

उल्लास की ऋतु

ये समय दो ऋतुओं के संधिकाल का माना जाता है जिसमें प्रकृति का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। इसमें मनुष्य, जीव और प्रकृति भी आलस्य को छोड़कर सचेतन हो जाती है। इस समय तक बसंत ऋतु का आगमन पूरी तरह हो जाता है। पेड़ों पर नए पत्ते लग जाते हैं और पूरे वातावरण में नवीनता छा जाती है। एेसी भी मान्यता है कि हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह माह के लिए शक्ति संचय करते है और तो अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह माह की शक्ति।

कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा

गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी के पूजन का विधान तो है ही साथ ही घर में सुख-समृद्घि और खुशियों को आमंत्रित करने के लिए घर के दरवाजे पर आम के पत्तों से बने बंदनवार सजाए जाते है। वहीं घर को अगरबत्ती व धूप आदि से सुगंधित किया जाता है। गुड़ी पड़वा पर पूरे दिन भजन-कीर्तन का दौर चलता हैं वहीं दुर्गा सप्तशती या रामायण के नौ दिन का पाठ भी इस दिन से प्रारंभ किया जाता है।

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पकवानों का भी विशेष महत्व

आंध्र प्रदेश में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पडवा’ के नाम से मनाया जाने वाले इस पर्व पर घरों में विशेष पकवान बनाए जाते है। जिसमें आंध्र प्रदेश में घरों में एक विशेष प्रकार का पेय पदार्थ ‘पच्चड़ी/प्रसादम’ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका निराहार सेवन करने से मनुष्य निरोगी रहता है। इससे चर्मरोग भी दूर होता है। जबकि महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के अवसर पर इस विशेष मौके पर पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है, जो कि गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली आैर कच्चे आम के मिश्रण से तैयार होती है। गुड़ मिठास का, तो नीम के फूल कड़वाहट मिटाने, जबकि आम व इमली जीवन के खटटे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।

सूर्य संवेदना पुष्पेः, दीप्ति कारूण्यगंधने। लब्ध्वा शुभम नववर्षअस्मिन कुर्यात्सर्वस्य मंगलम।।
इस श्लोक का तात्पर्य ये है कि जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना देता है और हमें दया भाव सिखाता है उसी प्रकार ये नया साल भी हमें हर पल ज्ञान दे। हमारा हर दिन, हर पल मंगलमय हो। अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए हमारे अनुभवी ज्योतिषी से बात करें!

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅटकाॅम टीम

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