करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए आैर कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए ये व्रत रखती है।
करवा चौथ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू
करवा चौथ के दिन शिव परिवार की पूजा का विधान है। जिसके तहत सुहागिन महिलाएं पूर्ण श्रद्घा और विश्वास के साथ भगवान शिव, देवी पार्वती, गणेश एवं कार्तिकेय की पूजा करती है। भगवान शिव का परिवार सभी के लिए आदर्श माना जाता है और शिव-पार्वती को वैवाहिक जीवन में खुशियां और समृद्घि प्रदान करने के लिए जाना जाता है। इस दिन चंद्र की भी पूजा का भी अत्यधिक महत्व है।
अन्य मान्यताएं
प्राचीनकाल में, करवा चौथ का पर्व वधू और ससुराल पक्ष से उसके द्वारा विशेष रूप से चुनी गर्इ उसकी सहेली के द्वारा मनाया जाता था। हालांकि, समय बीतने के साथ इस त्यौहार का दृष्टिकोण बदल गया है और महिलाएं इस दिन पति की दीर्घायु की कामना के साथ उपवास करने लगी। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला ये पर्व हिन्दुओ के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। पंजाब, यूपी, हरियाणा, एमपी और राजस्थान जैसे राज्यों में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। अलसुबह चार बजे सरगी से शुरू होने वाले इस व्रत के तहत महिलाएं चंद्र को अर्ध्य देने के बाद अपना उपवास तोड़ती है। इस व्रत को लेकर कर्इ कथाएं प्रचलित है। क्या आप भी अपने वैवाहिक जीवन में कठिनार्इयों का सामना कर रहे हैं ? क्या आपको ऐसा लगता है कि आपकी जिंदगी में आकर्षण की कमी है? तो हमारी व्यक्तिगत रिपोर्ट वैवाहिक जीवन से जुडी मुश्किले आपको सही मार्गदर्शन देगी।
करवा चौथ के व्रत की पूजा विधि
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव, देवी पार्वती, गणेश एवं कार्तिकेय के साथ चंद्रमा को स्थापित कर उनकी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुनें और जब चंद्र दर्शन हो तो चंद्र को अर्ध्य देकर छलनी से पहले चंद्र को और फिर पति को देखना चाहिए। इसके बाद, पति के हाथों से पानी पीकर ही इस व्रत को खाेला जाता है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, शक्कर तथा सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समान किसी सुहागिन के पांव छूकर उन्हें सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ की पूजन सामग्री
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, दही, घी, सुहागिन सामग्री ( मेहंदी, कुंकुम, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ) करवा, दीपक, कपूर, गेहूं, शक्कर, हल्दी, पानी का लोटा, पीली रेत, लकड़ी का आसन, छलनी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे इत्यादि संपूर्ण सामग्री एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें।
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चंद्र पूजा का महत्व
पति की दीर्घायु की कामना के साथ रखे जाने वाले करवा चौथ का व्रत चंद्र को अर्ध्य देने के बाद ही पूर्ण होता है। पौराणिक उपनिषदों में ऐसा माना जाता है चंद्रमा पुरूष रूपी ब्रह्मा का रूप है जिसकी आराधना से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते है। चंद्रमा मानसिक शांति प्रदान करता है जिससे संबंध मजबूत होते हैं। एक महत्व ये भी है चंद्रमा शिवजी की जटा का आभूषण है जो कि दीर्घायु का भी प्रतीक है। एेसे में रिश्तों की मजबूती तथा पति की दीर्घायु की कामना को लेकर ही व्रत का समापन चंद्र दर्शन के साथ होता है।
सैन्य दृष्टिकोण
उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में ये पर्व सैनिकों की पत्नियों द्वारा मनाया जाता है। जब देश के जवान अपने देश की रक्षा के लिए दूरस्थ सीमाआें पर तैनात होते है तो उनकी पत्नियां इस व्रत के माध्यम से अपने पति के विजयी होने और सुरक्षित वापसी की प्रार्थना करती है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के युद्घ के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों की पत्नी द्रोपदी को बताया था कि अगर वो करवा चाैथ के दिन उपवास रखती है तो पांडव युद्घ से सुरक्षित लौटेंगे।
अन्य किंवदंतियां
करवा चौथ उस समय आता है जब खेतों में गेंहूं की फसल बोर्इ जाती है। यही समय रबी की फसल काटने का भी होता है। प्राचीन समय में भारी मात्रा में गेहूं को एक मिट्टी के बर्तन में एकत्रित किया जाता था, जिन्हें करवा कहते थे। प्रायः यह समय कार्तिक मास की चतुर्थी का होता था, इसलिए यह त्यौहार करवा चौथ के रूप में पहचाने जाने लगा। गावों में पत्नियां अपने पति के लिए अच्छी फसल प्राप्ति की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। साथ ही ये भी मान्यता है कि अगर कुंवारी कन्याएं पूर्ण श्रद्घा और विश्वास के साथ ये व्रत रखती है तो उसे सुयोग्य वर की प्राप्ति भी हो सकती है।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम
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