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जानिए, दुर्गा पूजा का हर दिन क्यों है खास !

नवरात्रि का छठां दिन बंगाल में दुर्गा पूजा के शुभारंभ का संकेत है। इस तरह बंगाली समाज में स्थापना के पहले दिन माँ दुर्गा आैर उनके परिवार का पृथ्वी पर आगमन का स्वागत किया जाता है।


महा सप्तमी के अलसुबह, माँ दुर्गा की नौ ग्रहों के साथ पूजा होती है, जिसे नवपत्रिका के रूप में जाना जाता है। ये ग्रह माँ शक्ति के नौ रूपों का मूल रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं। इस अवसर पर मंत्र उच्चारण के बीचमाँ दुर्गा की मूर्ति को गंगा के पवित्र जल से स्नान कराया जाता है।


ये दिन दुर्गा पूजा के लिए अत्यधिक पावन दिन है। एेसा माना जाता है कि जब पुजारी धार्मिक मंत्रों के जप से अनुष्ठान कर रहे होते है तो देवी माँ इस मूर्ति में प्रवेश कर जागृत होती है। भक्तजन सुबह की शुरूआत पुष्पांजलि के साथ करते हैं। वे पवित्र जल में स्नान करने आैर पुष्पांजलि भेंट करने से पहले उपवास रखते हैं। हाथों में ताजे-सुगंधित पुष्प लेकर, वे मंत्र का जाप करते हुए देवी के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

कुमारी पूजा इस दिन का प्रमुख आकर्षण है। अगर आप देवी का मांगलिक जागरण देखना चाहते हैं, तो आपको पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में जाना चाहिए, जहां कुंवारी कन्याओं की माँ दुर्गा के रूप में पूजा की जाती है।

संध्या आरती दीपक, मोमबतियों आैर अगरबत्तियों के साथ की जाती है। संध्या पूजा दुर्गा अष्टमी की समाप्ति का आैर महानवमी की शुरूआत का सूचक है। संधि पूजा दुर्गा पूजा के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है आैर इसे अत्यधिक पवित्र माना जाता है।


महा आरती’ धार्मिक रीति-रिवाजों के लिए आैपचारिक अंत होता है। इस दिन पूरी रात चलने वाले सांस्कृतिक उत्सव जैसे संगीत, नृत्य, नाटक के कार्यक्रम दर्शकाें को मंत्रमुग्ध कर देते है। महानवमी पर माँ दुर्गा को चढ़ाए गए बड़े भोग आैर प्रसाद के साथ उपवास तोड़ा जाता है और बाद में इन प्रसादों को भक्तजनों में बांट दिया जाता है।


विजयालक्ष्मी, दशहरे के रूप में भी जानी जाती है जिसे भगवान राम की दानव रावण पर जीत प्राप्त करने के सम्मान में आैर महिषाषुर राक्षस पर देवी माँ की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है जिसे पूरे भारत भर में रावण दहन आैर आतिशबाजी के रूप में मनाया जाता है।
बंगाल में, देवी माँ को उनके परिवार सहित विदार्इ दी जाती है। भक्तजन ढोल-नगाड़ें बजाते है आैर मूर्ति को संध्या के समय पानी में विसर्जित किया जाता है। इस अवसर पर भक्त एक-दूसरे को प्रसाद भी बांटते हैं आैर अवसर को नृत्य के बीच धूमधाम से सेलीब्रेट करते हैं। शाम को कला, नाटक, नृत्य आैर संगीत जैसे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनायें,

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