हिंदू काल गणना में चंद्रमा को खास स्थान प्राप्त है, और चंद्रमा की मौजूदगी और उनकी गति के आधार पर ही वैदिक ज्योतिष में उन्हे केंद्र में रखा गया है। हिंदू धर्म कैलेंडर के अनुसार चंद्रमा की गति से मास या महीने को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है, जिसे हम शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के नाम से जानते है। शुक्ल पक्ष महीने के वह पंद्रह दिन होते है जब आकाश में प्रतिदिन चंद्रमा का आकार बढ़ता जाता है। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को हम पूर्णिमा के नाम से जानते है। ठीक इसके विपरीत कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन चंद्रमा का आकार लगातार कम होता जाता है और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन जब चंद्रमा आकाश से ओझल हो जाते है तब उसे अमावस्या या दर्श अमावस्या कहा जाता है।
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दर्श अमवस्या की कहानी
कई धर्म शास्त्रों में दर्श अमावस्या से जुड़ी कई कथाएं और कहानियां देखने को मिलती है। उन्ही में एक कथा के अनुसार प्राचीन समय में बारहसिंह आत्माओं में एक ने बच्चे की लालसा में गर्भधारण किया। फल स्वरूप उन्हे एक कन्या की प्राप्ति हुई, लेकिन बारहसिंह आत्माओं के साथ रहने में उस बालिका को परेशानियों का सामना करना पड़। दुख में उस बालिका को सदैव अपने पिता के प्रेम की कमी महसूस होती और वह पिता के प्यार के लिए व्याकुल हो उठती। पिता के प्रेम की चाह में वह लगातार उदास रहने लगी और धरती लोक पर पिता का प्रेम प्राप्त कर रहे बालकों के प्रति आकर्षित होने लगी। पिता की चाह को चरम पर देख उस उदास बालिका को पितृ लोक की आत्माओं उसे धरती लोक पर राजा अमावसु की बेटी के रूप में जन्म लेने की सलाह दी।
पितृ लोक की आत्माओं के कहे अनुसार उस बालिका ने राजा अमावसु के घर जन्म लिया और पिता से मिलने वाले सभी सुख प्राप्त किये। पितृ लोक की आत्माओं के सुझाव के कारण मिल रहे प्रेम और सुख के बदले वह बालिका उन पितृ आत्माओं का आभार जताना चाहती थी। उस बालिका ने पितृ आत्माओं के प्रति आभार प्रकट करने के लिए श्राद्ध का मार्ग अपनाया इस कार्य को करने के लिए उसने सबसे अंधेरी रात का चुनाव किया। जिस दिन चंद्रमा आकाश में मौजूद नहीं हो उस दिन वह पितृृ आत्माओं का विधि विधान से पूजन करने लगी। पितृ भक्ति के फलस्वरूप वह बालिका उन सभी सुखों की भागी बनी जो उसे स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो रहे थे। तभी से बिना चंद्रमा के आकाश को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या के नाम से जाना जाने लगा। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पितृ अपने लोक से धरती पर वापस आते है और अपने प्रियजनों को आर्शीवाद प्रदान करते है।
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दर्श अमावस्या पूजा विधि
अपने पूर्वज और पुरखों को याद करने के लिए महीने की सबसे अंधेरी रात आर्थात अमावस्या के दिन कुछ विशेष पूजा और अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार दर्श अमावस्या के दिन विधि विधान से पूजा अर्चना और उपवास का विशेष लाभ प्राप्त होता है।
– दर्श अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी, झील अथावा तालाब में स्नान करना चाहिए।
– इस दिन उपवास का विशेष महत्व है, इसलिए अमावस्या की तिथि की शुरूआत के साथ ही इस उपवास की शुरूआत हो जाती है और अगली तिथि को चंद्रमा के दर्शन के साथ इस उपवास को खोला जाता है।
– अपने पुरखों की शांति और उनके मोक्ष के लिए लोग गरीबों और जरूरतमंद लोगों को चीजें दान कर सकते है।
– इस दिन भगवान चंद्र की पूजा से जीवन की मुसीबतों को कम किया जा सकता है।
– इस दिन चंद्रमा की पूजा से व्यक्ति में आध्यात्मिक संवेदनशीलता का जन्म होता है।
– इस दिन पितृ श्राद्ध के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए।
– इस दिन तिल दान, पिंड दान और तर्पण का भी विशेष महत्व है।
– इस दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
– इसके अतिरिक्त भगवान शनि देव को नीले फूल, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए।
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साल 2025 की मासिक दर्श अमावस्यों की तारीख
तारीख | समय | महीने |
---|---|---|
29 जनवरी 2025, बुधवार | प्रारंभ – 19:35, 28 जनवरी समाप्त – 18:05, 29 जनवरी | माघ |
27 फ़रवरी 2025, गुरूवार | आरंभ – 08:54, 27 फरवरी समाप्त – 06:14, फरवरी 28 | फाल्गुन |
29 मार्च 2025, शनिवार | प्रारंभ – 19:55, 28 मार्च समाप्त – 16:27, मार्च 29 | चैत्र |
27 अप्रैल 2025, रविवार | आरंभ – 04:49, 27 अप्रैल समाप्त – 01:00, अप्रैल 28 | वैशाख |
26 मई 2025, सोमवार | आरंभ – 12:11, 26 मई समाप्त – 08:31, मई 27 | ज्येष्ठ |
25 जून 2025, बुधवार | आरंभ – 18:59, 24 जून समाप्त – 16:00, 25 जून | आषाढ़ |
24 जुलाई 2025, गुरूवार | आरंभ – 02:28, 24 जुलाई समाप्त – 00:40, 25 जुलाई | श्रावण |
22 अगस्त 2025, शुक्रवार | आरंभ – 11:55, 22 अगस्त समाप्त – 11:35, 23 अगस्त | भाद्रपद |
21 सितम्बर 2025, रविवार | आरंभ – 00:16, सितंबर 21 समाप्त – 01:23, 22 सितम्बर | आश्विन |
21 अक्टूबर 2025, मंगलवार | प्रारंभ – 15:44, अक्टूबर 20 समाप्त – 17:54, 21 अक्टूबर | कार्तिका |
19 नवंबर 2025, बुधवार | आरंभ – 09:43, 19 नवंबर समाप्त – 12:16, नवंबर 20 | मार्गशीर्ष |
19 दिसंबर 2025, शुक्रवार | प्रारंभ – 04:59, दिसंबर 19 समाप्त – 07:12, दिसंबर 20 | पौष |
वैदिक ज्योतिष के अनुसार दर्श अमावस्या के दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष विधान है। इस दिन चंद्रमा की पूजा जातक को जीवन के सभी पाप और दुष्कर्मों से मुक्ति देने का कार्य करती है। इस दिन उपवास का भी विशेष महत्व है। अमावस्या की तिथि के प्रारंभ होने के साथ उपवास शुरू कर अगले दिन चंद्रमा के दर्शन से ही उपवास के सार्थक फल प्राप्त हो सकते है।
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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम