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रामायण की प्रमुख घटनाओं पर है ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव, पढ़िए यहां विशेष बातें

रामायण की प्रमुख घटनाओं पर है ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव, पढ़िए यहां विशेष बातें

देश में राम मंदिर के उद्घाटन के शुभ अवसर की प्रतीक्षा अब लगभग पूरी हो गई है। 22 जनवरी को रामलला अयोध्या के भव्य राम मंदिर में विराजेंगे। माना जा रहा है कि यह बहुत ही खास मुहूर्त है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ठीक 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से शुरू होगी और 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड पर यह मुहूर्त खत्म हो जाएगा। इस दिन हिंदू महीने पौष की द्वादशी तिथि है। मृगशीरा नक्षत्र है और प्राण प्रतिष्ठा के समय मेष लग्न और वृश्चिक नवांश रहेगा।

भारतीय ज्योतिषियों ने इस गणना को बहुत ही शोध करके निकाला है। बहरहाल, क्या आप जानते हैं कि रामायण की हर महत्वपूर्ण घटना में नक्षत्रों और ग्रहों की चाल की विशेष गणना की गई है। राममंदिर उद्घाटन के इस शुभअवसर गणेशास्पीक्स की इस खास पेशकश में पढ़ें, भगवान राम के जीवन में नक्षत्रों और ग्रहों की चाल का किस तरह महत्व रहा है। रामायण और रामचरित मानस में स्वयं  महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदासजी ने इन ग्रहों और नक्षत्रों की गणना बताई है। आप भी अपने जीवन में नक्षत्रों और ग्रहों की विशेष गणना करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

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पुत्रेष्टि यज्ञ समाप्त होने के एक वर्ष के बाद भगवान श्री राम का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र था। भगवान का जन्म कर्क लग्न में हुआ था, जब बृहस्पति के साथ चंद्रमा, सूर्य, मंगल, शुक्र और शनि जैसे ग्रह उच्च के थे। वहीं उनके छोटे भाई भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र में मीन लग्न में हुआ था। वहीं जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ। जन्म के 11 दिन बीतने के बाद बच्चों का नामकरण संस्कार किया गया। अत्यधिक प्रसन्न गुरु वशिष्ठ ने कौशल्या के पुत्र का नाम राम, कैकेयी के पुत्र का भरत, सुमित्रा के एक पुत्र का नाम लक्ष्मण और दूसरे का शत्रुघ्न रखा। ये सभी बालक पूर्वाभाद्रपाद और उत्तराभाद्रपद सितारों की तरह चेहरे पर तेज लिए हुए थे।

इस बारे में रामायण का श्लोक जनमानस में प्रचलित है-

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट्समत्ययु:।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।।1.18.8।।

नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।1.18.9।।

प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम्।
कौसल्याऽजनयद्रामं सर्वलक्षणसंयुतम्।।1.18.10।।

विष्णोरर्धं महाभागं पुत्रमैक्ष्वाकुवर्धनम्।


भगवान राम और उनके भाइयों का विवाह उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था। रामायण के अनुसार विवाह से पहले, राजा जनक ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र से कहते हैं: – “जल्दी ही उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है। विद्वानों द्वारा विवाह के लिए इस नक्षत्र को अत्यंत शुभ बताया गया है।” परंपराओं के अनुसार एक ही माता-पिता की दो संतानों का विवाह एक ही लग्न और एक ही मुहूर्त में नहीं किया जा सकता। हालाँकि, श्री राम और भरत अलग-अलग माताओं से थे, इसलिए यह प्रतिबंध मान्य नहीं था। लेकिन लक्ष्मण और शत्रुघ्न का विवाह भी इसी दिन हुआ था, लेकिन दोनों के नवांश अलग थे, इसीलिए विद्वानों ने दोनों के एक साथ विवाह को यहां अनुकूल बताया।

रामायण में यह श्लोक कुछ इस तरह है –

मखा ह्यद्य महाबाहो तृतीये दिवसे प्रभो।
फल्गुन्यामुत्तरे राजंस्तस्मिन्वैवाहिकं कुरु।।1.71.24।।

रामलक्ष्मणयो राजन् दानं कार्यं सुखोदयम् ।।


भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए पुष्य नक्षत्र का मुहूर्त तय किया गया था। रामायण के श्लोक का यहां अर्थ कुछ इस प्रकार है श्री राम के राज्याभिषेक के लिए, राजा दशरथ ने ऋषि वशिष्ठ को निवेदन किया कि  “कल पुष्य नक्षत्र होगा, जो राजकुमार श्री राम के राज्याभिषेक के लिए बहुत शुभ है। कृपया इसकी व्यवस्था करें।

अद्य चन्द्रोऽभ्युपगतः पुष्यात्पूर्वं पुनर्वसू।
श्वः पुष्ययोगं नियतं वक्ष्यन्ते दैवचिन्तकाः।।2.4.21।।


श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा के बाद, दशरथ ने श्री राम को एक शगुन, अपने सितारे, ग्रहों की स्थिति का वर्णन किया। वे कहते हैं हे राम! मुझे एक दुःस्वप्न आया है। इसमें तेज ध्वनि के साथ उल्काएँ गिर रही हैं। हे राम! मेरा जन्म नक्षत्र रेवती सूर्य,  मंगल और राहु ग्रहों से युक्त है। आम तौर पर ऐसी स्थिति में राजा या तो मर जाएगा या खतरनाक स्थिति का सामना करेगा। आज पुनर्वसु नक्षत्र में चंद्रमा का उदय हुआ है। कल पुष्य नक्षत्र होगा, जो आपके राज्यभिषेक के लिए सबसे उचित है। तुम राज्यभिषेक के लिए तैयार हो जाओ और आवश्यक निर्देशों का पालन करों।

ग्रहों की इस गणना के बारे में रामायण में श्लोक कुछ इस तरह से लिखा गया है-

अपि चाद्याऽशुभान्राम स्वप्ने पश्यामि दारुणान्।
सनिर्घाता दिवोल्का च पततीह महास्वना।।2.4.17।।

प्रायेण हि निमित्तानामीदृशानां समुद्भवे।
राजा हि मृत्युमाप्नोति घोरां वाऽऽपदमृच्छति।।2.4.19।।

तद्यावदेव मे चेतो न विमुह्यति राघव।
तावदेवाभिषिञ्चस्व चला हि प्राणिनां मतिः।।2.4.20।।


वाल्मीकि रामायण के अनुसार पक्षीराज जटायु  भगवान राम से कहते हैं, “रावण आपकी पत्नी सीता को विंदा मुहूर्त में ले गया है। जो व्यक्ति इस मुहूर्त में किसी दूसरे व्यक्ति की वस्तु चुरा लेता है, वह न तो उसे अपने पास रख पाता है और न ही उसका उपभोग कर पाता है। वह वस्तु  अपने स्वामी (मालिक) के पास फिर लौट आती है। सीता को हरण करते समय रावण ने इस बात का विचार नहीं किया। वह काँटे में फँसी मछली की तरह नष्ट हो जायेगा, इसलिए श्रीराम आप चिंता ना करें।”

येन याति मुहूर्तेन सीतामादाय रावणः।
विप्रणष्टं धनं क्षिप्रं तत्स्वामी प्रतिपद्यते।।3.68.12।।

विन्दो नाम मुहूर्तोऽयं स च काकुत्स्थ नाबुधत्।


भगवान श्रीराम ने किष्किन्धा से लंका तक प्रस्थान का मुहूर्तनिश्चित कर दिया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार वे कहते हैं, “हे सुग्रीव, अब सूर्य मध्य आकाश में है और मुहूर्त विजया है, तो चलिए अब हम अपनी यात्रा शुरू करते हैं। आज उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है और कल हस्त नक्षत्र होगा। आइए वानर सेना को साथ लेकर आगे बढ़ें।”

उत्तरा फल्गुनी ह्यद्य श्वस्तु हस्तेन योक्ष्यते।
अभिप्रायाम सुग्रीव सर्वानीकसमावृताः ।।6.4.5।।

इस तरह वाल्मीकि जी ने बताया है कि संपूर्ण रामायण में घटित हुई घटनाएं किस तरह के सूर्य, चंद्रमा सहित नक्षत्रों की गणनाओं पर आधारित थी।

यदि आप भी आपके जीवन को पूर्ण सफल और सौभाग्यशाली बनाना चाहते हैं तो आज ही हमारे एस्ट्रोलॉजर्स से अपनी जीवने के शुभ मुहूर्त की जानकारी जरूर पाएं।

श्री गणेशाय नम:


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