कुंभ मेला : 2025, स्नान की तारीख और धार्मिक मान्यताएं
2025 में संगम नगरी प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुंभ मेला लग रहा है। कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार लगता है और हिंदू धर्म में इसका काफी महत्व है। इस दौरान लोग संगम में स्नान कर पुण्य के भागी बनते हैं। कुंभ के स्नान की तारीखों का भी ऐलान हो चुका है। शाही स्नान 14 जनवरी से शुरू होगा।
कुंभ स्नान से होती है मोक्ष की प्राप्ति
हिंदू धर्म में कुंभ की धार्मिक मान्यता है और इसे एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है। कुंभ मेला हर 12 साल में आता है। दो बड़े कुंभ मेलों के बीच एक अर्धकुंभ भी लगता है। इस बार साल 2025 में आने वाला कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है। प्रयाग में दो कुंभ मेलों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन शुरु होता है। इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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ग्रहों की चाल के कारण गंगा जल हो जाता है औषधिकृत
कहा जाता है कि इस दौरान ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी के पास गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहां जुटते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है।
कुंभ मेले का ज्योतिषीय महत्व
ग्रह नक्षत्रों के विचरण के अनुसार, हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में सदियों से हर तीसरे वर्ष अर्ध या पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। यह मूल रूप में बृहस्पति और सूर्य ग्रह की स्थिति के आधार पर विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन उच्च लोक के द्वार खुलते हैं और इस दिन कुंभ स्नान करने से आत्मा को उच्च लोक की प्राप्ति हो जाती है।
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कुंभ मेला : पौराणिक मान्यता
कुंभ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें प्रमुख समुद्र मंथन के दौरान निकलनेवाले अमृत कलश से जुड़ा है। महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। क्षीरसागर मंथन के बाद अमृत कुंभ के निकलते ही इंद्र के पुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गए। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा कर उसे पकड़ लिया। अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक लगातार युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं। शांति के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत बांटकर देव-दानव युद्ध का अंत किया। तब से जिस-जिस स्थान पर अमृत की बूंदें गिरीं थीं, वहां कुंभ मेले का अायोजन होता है।
कुंंभ मेला: 2025- स्नान की तारीख
13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी
12 फरवरी 2025: माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि
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