योगिनी एकादशी के व्रत से मिलती है निर्मल काया
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान श्री नारायण यानी श्री हरि विष्णु की पूजा करने का विधान है। योगिनी एकादशी के व्रत से सभी तरह के पापों का नाश हो जाता है। इतना ही नहीं व्रत के प्रभाव से सभी तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से भी निजात मिलती है। खास तौर पर त्वचा संबंधी बीमारियों से निजात पाने के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण है।
योगिनी एकादशी व्रत विधि
– इसमें भी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास किया जाता है।
– व्रत के नियम एक दिन पहले ही शुरू हो जाते हैं, इसलिए दशमी तिथि की रात को भी नमक सेवन नहीं करना चाहिए।
– योगिनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।- दिन भर स्वच्छता का पालन करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
– व्रत के दौरान व्रती को अन्न से परहेज करना चाहिए। बार-बार पानी भी नहीं पीना चाहिए।
– बिना नमक वाला खाना बनाया जाना चाहिए।
– अगले दिन, सूर्योदय के दौरान भगवान को भोग लगाने और दीपक जलाने के बाद सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर व्रत का पारण करना चाहिए।
– किसी कारण अगर सुबह में पारण नहीं कर पाते हैं तो मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत के करने से जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि व्रत से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में अलकापुरी में कुबेर नामक राजा राज करता था। वह भगवान शिव का भक्त था। उसके बाग में एक माली काम करता था, जिसका नाम हेम था। वही प्रतिदिन मानसरोवर से पूजन के लिए फूल लाता था। एक दिन हेम माली पूजन कार्य को भूलकर अपनी पत्नी के साथ रमण करने लगा और इस कारण वह फूल नहीं ले जा सका। विलंब होते देख राजा ने अपने सैनिकों को पता लगाने को कहा। जब राजा को हेम की स्थिति का पता चला तो उन्होंने उसे स्त्री वियोग सहने और कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। श्राप के बाद माली इधर-उधर भटकते हुए एक दिन मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने उसके दुख का कारण जान उसे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने को कहा। ऋषि के कहे अनुसार हेम माली ने योगिनी एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसकी काया निर्मल हो गई और वह दुबारा अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक रहने लगा।