शारदीय नवरात्रि इस साल यानी 2021 में 7 अक्टूबर से शुरू होगी। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा मतलब नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ शुरू होने वाले इन पवित्र दिनों में मां शक्ति की आराधना कर उनसे मनवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन माता शक्ति की आराधना बेहद संयम, धैर्य और वैदिक आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए की जाती है। नवरात्रि के दौरान आदि शक्ति अंबिका के अनेक रूपों में से 9 देवियों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में क्रम के अनुसार इन देवियों के पूजा और आराधना की जाती है। देवी का प्रत्येक रूप किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। आइए जानते हैं किस देवी की आराधना से किस ग्रह के दोष से मुक्ति पायी जा सकती है-
नवरात्रि का पहला दिन – मां शैलपुत्री पूजा
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना कर मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। मां शैल पुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री है, इन्हें पार्वती के नाम से भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी पूजा जाता है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है, इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और वे बाएं हाथ में कमल धारण किए हुए हैं। मां शैलपुत्री की आराधना से चंद्र जनित दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा भाग्य के प्रदाता है, जो मां शैलपुत्री द्वारा शासित है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना से चंद्रमा के किसी भी बुरे प्रभाव को दूर किया जा सकता है।
नवरात्रि का दूसरा दिन – देवी ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार बल और साहस के दाता मंगल देवी ब्रह्मचारिणी द्वारा शासित है। नवरात्रि के दूसरे दिन पूरे नीति नियमों के साथ देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि का तीसरा दिन – देवी चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां पार्वती के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी की आराधना की जाती है। देवी चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध वृत्ताकार चंद्रमा विराजमान है, जो घंटी के समान दिखाई देता है, इसलिए मां के इस रूप को चंद्रघंटा के नाम से जाता है। मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं, वे खड़ग, त्रिशूल, गदा सहित कई अस्त्र – शस्त्रों से सुसज्जित है। मां का यह चंद्र घंटा रूप शुक्र ग्रह का स्वामी है, मां चंद्रघंटा की पूजा से प्रेम अथवा वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियों का नाश होता है। इसी के साथ शुक्र से संबंधित दोषों से भी मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि का चौथा दिन – देवी कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन मां पार्वती के कुष्मांडा रूप की आराधना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती सिद्धिदात्री रूप लेने के बाद वे ब्रह्मांड को शक्ति प्रदान करने के लिए सूर्य के केंद्र में स्थित हुई। मां कुष्मांडा सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसलिए भगवान सूर्य का शासन देवी कुष्मांडा द्वारा किया जाता है। मां कुष्मांडा की आराधना से सूर्य के सभी दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है। मां कुष्मांडा की सवारी शेर है और उनकी अष्ट भुजाओं में अस्त्र – शस्त्र सहित माला, कमल और अमृत कलश होता है।
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नवरात्रि का पांचवां दिन – देवी स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना के लिए उत्तम माना गया है। भगवान कार्तिकेय जिन्हें स्कंद, मुरूगन या षडानन के नाम से भी जाना जाता है, उनके जन्म के बाद मां पार्वती के इस स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। मां के इस रूप की चार भुजाएं है और उन्होंने अपने दाएं हाथ में भगवान कार्तिकेय को थामा है वहीं, दो अन्य हाथों में कमल के फूल, और एक हाथ वर मुद्रा में है। बुद्धि और ज्ञान के ग्रह बुध पर देवी स्कंदमाता का शासन होता है। मां स्कंदमाता की पूजा से बुध जनित दोष दूर होते हैं।
नवरात्रि का छठवां दिन – मां कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार राक्षस महिषासुर से जन मानस को मुक्ति देने के लिए देवी पार्वती ने मां कात्यायनी का रूप धारण किया था। माता के इस स्वरूप को महिसासुर मर्दिनी के रूप में भी पूजा जाता है। मां कात्यायनी वैदिक ज्योतिष में अमृत समान माने गये गुरू ग्रह पर शासन करती है। मां कात्यायनी की आराधना से गुरू के दोषों का निवारण होता है और गुरू को मजबूती मिलती है।
नवरात्रि का सातवां दिन – मां कालरात्रि
दुष्टों पर काल की तरह बरसने वाली मां कालरात्रि की आराधना नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। जब मां पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों के संहार के लिए अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटाया और खुद को कालरात्रि के रूप में प्रकट किया। कालरात्रि माता पार्वती का सबसे उग्र स्वरूप है। घने अंधकार के समान रंग लिए मां कालरात्रि की सवारी गधा है। उनके चार हाथ है, एक हाथ में तलवार और दूसरे में लौह अस्त्र है। वहीं एक हाथ अभयमुद्रा, तो वहीं दूसरा हाथ वरमुद्रा में है। ग्रहों में न्यायधीश शनि पर मां कालरात्रि का शासन होता है, नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना से शनि से संबंधित सभी दोषों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि का आठवा दिन – मां महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की आराधना की जाती है। मां महागौरी के चार हाथ है, एक हाथ में डमरू, दूसरे में तलवार, वहीं तीसरा अभय मुद्र और चैथा हाथ वरमुद्रा में है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार मां महागौरी को राहु ग्रह का स्वामी माना जाता है, नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की विधिवत पूजा अर्चना से राहु से संबंधित दोषों का नाशा होता है।
नवरात्रि का नौवा दिन – मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नौवे दिन मां सिद्धदात्री की पूजा – अर्चना की जाती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। इनके चार हाथ है और वे कमल पुष्प पर विराजमान है। देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह की स्वामी है, माता सिद्धिदात्री की पूजा केतु से संबंधित सभी दोषों को समाप्त करती हैं।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम
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