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ज्योतिष विवेचना: गिरती भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकारी उपाय

ज्योतिष विवेचना: गिरती भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकारी उपाय

गिरती भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा देगा बढ़ता सार्वजनिक व्यय

राष्ट्रीय संख्यिकी विभाग द्वारा जारी तिमाही आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए है। चालू वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी तीमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर गिरकर 4.5 प्रतिशत रह गई। यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले 6 सालों में आई सबसे बड़ी गिरावट है। इस भारी गिरावट के पीछे बुनियादी उद्योगों के उत्पादन में आई गिरावट को माना जा रहा है। अक्टूबर में जारी बुनियादी उत्पादन वृद्धि के आंकड़ों में 5.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इन बुनियादी उद्योगों में से 6 में गिरावट दर्ज की गई जिनमें कोयला, कच्चा तेल, सीमेंट, प्राकृतिक गैस, बिजली और स्टील जैसे उद्योग शामिल है। इन कोर उद्योगों के उत्पादन में आई कमी भारत जैसी उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी के समान है। मौजूदा दौर में भारत के सामने उभरी आर्थिक चुनौती के कई पहलू है, जिन पर देशभर के अर्थ-शास्त्री चिंतन कर रहे है। लेकिन एक ऐसा कारण जिसका प्रभाव देश दुनिया और समस्त ब्रह्मांड में समान रूप से पड़ता है उस पहलू पर फिलहाल किसी का ध्यान नहीं है। ग्रहों, नक्षत्रों राशियों और दशा-महादशा का सीधा प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति और संस्था को प्रभावित करता है। गणेशास्पीक्स के अनुभवी ज्योतिषियों ने अर्थव्यवस्था के गिरते ग्राफ़ को वैदिक ज्योतिष के माध्यम से समझने की कोशिश की है। हमने भारत देश की कुंडली के शुभ-अशुभ पहलूओं को देखते हुए सिर्फ आर्थिक स्थिति का विश्लेषण किया और जो तथ्य निकल कर सामने आए वे सच में चौंकाने वाले है।

राहु का धन भाव में गोचर भ्रमण, बुनियादी उद्योगों में गिरावट

वैदिक ज्योतिष ग्रहों, उनकी स्थिति और प्रभाव को समझने का एक मात्र सटीक साधन है। मौजूदा समय में गोचर राहु का भ्रमण धन भाव से हो रहा है। राहु सबसे पापी ग्रह है। कुंडली के धन भाव में राहु के गोचर भ्रमण से आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कुंडली में जब ऐसी स्थिति का निर्माण होता है तब अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव और हर ओर से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। संभवतः इसी के प्रभाव से बुनियादी ढाँचागत उद्योगों में भी गिरावट देखने को मिल रही है। सरकार द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों में कोयला उत्पादन 17.6 प्रतिशत, बिजली उत्पादन 12.4 प्रतिशत, सीमेंट उत्पादन 7.7 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस 5.7, कच्चा तेल 5.1 प्रतिशत और स्टील उत्पादन में 1.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान कृषि, वानिकी और मत्सय पालन व खनन और उत्खनन में क्रमशः 2.1 और 0.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई। इसी के साथ रिफ़ाइनरी उत्पादों की वृद्धि दर गिरकर 0.4 प्रतिशत रह गई। वहीं बीते साल 2018-19 में बुनियादी क्षेत्र के इन्ही आठ उद्योगों के उत्पादन में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी।

स्वतंत्र भारत की कुंडली

स्वतंत्र भारत की तारीख – 15-8-1947
स्वतंत्र भारत का समय – 12.00 AM
स्वतंत्र भारत का स्थान – दिल्ली, भारत

कुंडली के अनुसार सकारात्मक-नकारात्मक पहलू

गोचर राहु का भ्रमण और चंद्र महादशा में गुरु की युति चल रही हैं। गुरु अष्टम भाव का स्वामी हैं और गोचर गुरु भी अष्टम भाव का भ्रमण कर रहा हैं। यहां ग्रहों की अशुभ युति बन रही है। दिनांक 11-03-2020 से चंद्र की दशा में शनि की युति और बुध की अंतरा में अर्थव्यवस्था में सुधार होने की संभावना हैं।

इस अवधि में अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक घटनाएं घटेंगी। इस दौरान अर्थव्यवस्था को सही तरह से समझने और सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी। इस समयावधी में अच्छा आर्थिक विकास प्राप्त करने की उम्मीद है। अर्थव्यवस्था में सुधार होने से देश का मान-सम्मान बढ़ेगा और वैश्विक पटल पर देश को नई पहचान मिलेगी।

सकारात्मक पहलू

भारत देश की कुंडली का अध्ययन करने पर जो सकारात्मक पहलू निकाल कर सामने आए वे यह हैं कि लग्न भाव का स्वामी शुक्र, पराक्रम भाव के स्वामी चंद्र, धन भाव के स्वामी बुध, भाग्य और कर्म भाव के स्वामी शनि, सुख-शांति भाव के स्वामी सूर्य के साथ बैठे हैं। जो भारत देश को किसी भी परिस्थिति में स्थिरता देने का काम करता हैं।

इससे नक़दी प्रवाह, आमदमी और उपार्जन शक्ति को पहचानने के लिए ये वर्ष महत्वपूर्ण साबित होगा। इस दौरान अपनी क्षमता से अधिक व्यवहारिक और अक्लमंदी से आय बढ़ाने की कोशिश करनी होगी। धन और सम्पत्ति, के अलावा व्यक्तिगत मूल्यों के लिए भी ये एक मजबूत समय साबित होगा। मतलब पैसों व संपत्ति के बढ़ने के साथ-साथ व्यक्तिगत मूल्यों को भी ऊंचा उठाने की दृष्टि से यह एक अच्छा समय कहा जा सकता हैं। पूर्व में किए गए निवेश से भी लाभ मिलने की अच्छी संभावना हैं।

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नकारात्मक पहलू

नकारात्मक बात यह हैं कि प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु बैठा हैं। जो समय समय पर गलत निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है, जिससे अर्थव्यवस्था के गिरने का खतरा बना रहता है। कुछ वित्तीय मामलों के कारण देश में तनाव का माहौल बन सकता है। लेकिन इन स्थितियों में धीरे-धीरे सुधार भी आता रहेगा। हालांकि अर्थव्यवस्था में सुधार के बावजूद सरकारी तिजाेरी में पैसों की कमी बनी रहेगी। इस दौरान नीति निर्माताओं को जरुरत से ज्यादा खर्च ना करने की सलाह है। संक्षेप में कहें तो यह समय आर्थिक रूप से संतोषजनक नहीं है। वित्तीय प्रबंधन मुश्किल और उथल-पुथल भरा रह सकता हैं। वित्त और निवेश पर ज्यादा ध्यान देना होगा। इस समयावधी में कर्ज लेने या नई देनदारियां तैयार करना अच्छे संकेत नहीं हैं।

निराशाजनक आंकड़े मंज़ूर नहीं

राष्ट्रीय संख्यिकी विभाग (एनएसओ) द्वारा आंकड़े जारी करने के बाद देश-दुनिया के कई प्रभावी अर्थशास्त्रियों ने इस पर चिंता जाहिर की है। पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थ शास्त्री डाॅ मनमोहन सिंह ने नेशनल इकोनाॅमी कोनक्लेव में अपने भाषण के दौरान अर्थव्यवस्था के इन आंकड़ों को निराशाजनक और अस्वीकार्य बताया उन्होंने कहा इस समय जब पूरी दुनिया हमसे 8 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर पर बढ़ने की उम्मीद कर रही है उस समय हमारा 4.5 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़ना बेहद चिंताजनक है। सिंह इस परिस्थिति के लिए विमुद्रिकरण (नोटबंदी) और वस्तु सेवा कर के खराब क्रियांवयन को जिम्मेदार मानते है। उनका और कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि उपभोक्ता संचालित भारतीय अर्थव्यवस्था एक के बाद दो बड़े आर्थिक बदलावों को अचानक और एक के बाद एक सहन नहीं कर पायी और यही बुनियादी उद्योगों में आई बड़ी गिरावट का कारण बनी।

सरकार के उपाय और उपभोक्ताओं का रुझान

मनमोहन सिंह जैसे कई अर्थशास्त्रियों से इतर अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि, सकल घरेलू उत्पादों में आई यह गिरावट आखिरी गिरावट है। अब आने वाले तीसरे और चौथे तिमाही नतीजों में सुधार की उम्मीद नजर आती है। इसके पीछे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के सरकार के उन प्रयासों को वजह माना जा रहा है, जिनमें काॅर्पोरेट टैक्स में राहत, बैंकों को राहत पैकेज और रियल स्टेट सेक्टर को दी गई राहत को मुख्य माना जा रहा है। मौजूदा आंकड़ों में भी इस बात के संकेत मिलते है कि आने वाले तिमाही नतीजों में भारत अपने आर्थिक प्रदर्शन को सुधारेगा। इसके पीछे वही आंकड़े है जो हमारी आर्थिक वृद्धि के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वर्तमान वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के नतीजों में सार्वजनिक व्यय (पब्लिक स्पेंटिंग) के आंकड़ों में काफी सुधार देखने को मिला। दूसरी तिमाही के नतीजों में सार्वजनिक व्यय के आंकड़ें पिछली तिमाही 8.5 से बढ़कर 11.5 पर पहुंच गए है जिसका मतलब यह है कि आने वाले समय में मांग बढ़ेगी, मांग बढ़ने पर औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा और लगातार गिरते औद्योगिक उत्पादन के संभलने से अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के काफी आसार नजर आते है। मौजूदा आर्थिक गिरावट को संभालने के लिए सरकार के साथ ही आरबीआई ने भी कई बड़े फ़ैसलों और बदलावों से अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोशिश की है। उम्मीद है कि आरबीआई प्रत्येक 2 महीनों में जारी करने वाली अपनी मौद्रिक नीति में कुछ राहत दें जिससे बैंक अधिक मात्रा में उपभोक्ताओं को कर्ज दे सके और वह पैसा गिरती अर्थव्यवस्था में आकर सहारा देने का कार्य करें।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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