ऋषि पंचमी व्रत इस साल यानी 2025 में 28 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा। देश के ज्यादातर भागों में ऋषि पंचमी का यह व्रत महिलाएं करती है, लेकिन कई जगह पुरुष भी जाने-अनजाने हुए पापकर्मों से मुक्ति के लिए भाद्रपद शुक्ल की पंचमी तिथि को इस व्रत को जरूर करते हैं। 28 अगस्त, गुरुवार को सुबह 11:09 से लेकर दोपहर 01:37 तक इस व्रत की पूजा और कथा पढ़ी जा सकती है। गुजरात सहित कुछ भागों में इस पर्व को सामा पाचम या सामा पंचमी भी कहा जाता है।
व्रत में इन नियमों को निभाएं
सुबह उठकर जल्दी स्नान करके पवित्र होइए। साफ सुथरे कपड़े पहन करे। घर के चौक में गोबर और शुद्ध मिट्टी के मिश्रण से साफ करें। कुमकुम और हल्दी से सप्तऋषि के चिह्न बनाएं। सप्तऋषि के चिह्न का मतबल अंगुली से सात बिंदी लगाना है। इस दिन हल का बोया धान नहीं खाया जाता। महिलाएं इस दिन मोरधन या समा खाती है।
क्यों किया जाता है व्रत
महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सबसे अधिक अपवित्र हो जाती है। ऐसे में यदि उनसे धार्मिक कार्य आदि करने में किसी तरह की कोई त्रुटि हो जाएं या करें किसी तरह की छुआछुत हो जाएं, तो इसके दोष से मुक्त होने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है।
कुछ इस तरह की है ऋषि पंचमी व्रत कथा
विदर्भ देश में एक उत्तंक नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था, उसके एक पुत्र और एक पुत्री थे। विवाह योग्य होने पर उसके अपनी बेटी का विवाह अच्छे घर में कर दिया, लेकिन कुछ समय बाद ही उसकी बेटी विधवा हो गई। उसकी बेटी इसे अपने भाग्य की नियती समझकर विधवा की तरह जीवन जीने लगी। नदी किनारे उसने अपनी कुटिया बनाई। एक दिन उसके शरीर में कीडे़ पड़ने लगे। ब्राह्मण ने देखा कि उसकी बेटी ने पूर्व जन्म में रजस्वला होने पर घर के बर्तन छू लिए थे और इस जन्म में भी अभी तक ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया था। इसके बाद ब्राह्णण ने ऋषि पंचमी व्रत का महत्व बेटी को बताया। व्रत के बाद बेटी सभी पापों से मुक्त हो गई।
शुभकामनाओं के साथ
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