राहु और केतु सौरमंडल में बनने वाली वह खगोलीय स्थिति है जहां चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को काटती है। अंग्रेजी में इसे नाॅर्थ लूनर नोड और साउथ लूनर नोड कहा जाता है। राहु और केतु का उल्लेख भारतीय दर्शन सहित वैदिक ज्योतिष में देखने को मिलता है। भारतीय दर्शन में इन्हे खतरनाक दैत्य की संज्ञा दी गई है, वहीं वैदिक ज्योतिष में इन्हे महत्वपूर्ण छाया ग्रह माना गया है। आम जन-मानस में इन ग्रहों को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है, लेकिन वैदिक ज्योतिष में इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों के साथ ही सकारात्मक प्रभावों का भी उल्लेख मिलता है। इन छाया ग्रहों की सबसे बड़ी खूबी या कमज़ोरी यह है कि ये ग्रह हमारे सौरमंडल में प्रत्यक्ष रूप में मौजूद नहीं है बल्कि यह एक स्थिति है जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की गोचर कक्षाओं के आपस में एक दूसरे को काटने से पैदा होती है। आईए इसे सरल शब्दों में विस्तार से समझने की कोशिश करते है।
सौरमंडल में राहु और केतु की स्थिति
सौरमंडल में राहु और केतु की स्थिति समझने के लिए हमें सूर्य-पृथ्वी और पृथ्वी-चंद्र की गोचर कक्षाओं को समझना होगा। इस जटिल प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हम इन्हे एक-एक कर समझने की कोशिश करेंगे।
सूर्य और पृथ्वी की कक्षा – हमारा विशाल सौर मंडल जिसका केंद्र सूर्य हैै। सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रह एक निश्चित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते है। इसी क्रम में पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा करती है, जिस निश्चित पथ पर प्रथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है उसे पृथ्वी की कक्षा कहा जाता है।
पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा – जिस तरह पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है ठीक वैसे ही चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है और जिस निश्चित पथ पर चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है उसे चंद्रमा की कक्षा कहा जाता है। स्पष्ट रूप से समझने के लिए नीचे दी गई तस्वीर देखें –
अब पृथ्वी और चंद्रमा का गोचर पथ अर्थात कक्षा को शाब्दिक और चित्र में समझने के बाद एक कदम आगे बढ़ते है। सूर्य का परिक्रमा करती पृथ्वी और पृथ्वी का परिक्रमा करता चंद्रमा इन दोनों ग्रहों का गोचर एक साथ हो रहा है तब एक स्थाई स्थिति निर्मित होती है। पृथ्वी की निश्चित कक्षा और चंद्रमा की निश्चित कक्षा किंही दो बिंदुओं पर एक दूसरे को 180 डिग्री के कोण पर काटती है। चंद्रमा की कक्षा और पृथ्वी की कक्षाओं का एक दूसरे को काटने वाले बिंदु ही राहु और केतु है। तस्वीर से स्थिति को समझें…
जैसा तस्वीर में दर्शाया गया है, चंद्रमा की कक्षा दो बिंदुओं पर पृथ्वी की कक्षा को काट रही है। सौर मंडल में मौजूद इस स्थाई स्थिति को राहु और केतु के रूप में जाना जाता है। अब इन बिंदुओं में राहु और केतु को अलग-अलग पहचानने के लिए आपको यह समझना होगा की चंद्रमा किस दिशा में पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है जब चंद्रमा अपनी निश्चित कक्षा से पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए नीचे उतरते समय जिस बिंदु पर पृथ्वी की कक्षा को काटता है वह केतु है अंग्रेजी में केतु की स्थिति को साउथ लूनर नोड कहते है। वहीं जब चंद्रमा की कक्षा ऊपर चढ़ते हुए पृथ्वी की कक्षा को काटती है तो उसे राहु कहा जाता है अंग्रेजी में इसे नाॅर्थ लूनर नोड कहा जाता है।
राहु और केतु का प्रभाव और लोगों की अवधारणा
वैसे जन सामान्य के बीच राहु और केतु को लेकर कुछ खास अवधारणा बनी हुई है। जैसे राहु और केतु दोनों खतरनाक ग्रह है और यदि ये मनुष्य की कुंडली को प्रभावित करें, तो वह दुख का भागी बनता है। यह आम अवधारणा कुछ हद तक सही है लेकिन पूरी तरह नहीं क्योंकि राहु-केतु कई अनुकूल परिस्थिति में मनुष्य को सकारात्मक परिणाम भी देते है। इसे ऐसे समझें कि, वैदिक ज्योतिष में सूर्य को मनुष्य की आत्मा, चंद्र को मनुष्य का मन और पृथ्वी को मनुष्य का शरीर माना गया है। अब जब राहु और केतु की स्थिति इन तीनों मतलब सूर्य मनुष्य की आत्मा, चंद्रमा मनुष्य का मन और पृथ्वी मनुष्य के शरीर तीनों को एक करने की स्थिति है। जब मनुष्य की आत्मा, मन और शरीर एक स्थिति में होते है तब वह साधना की उच्चतम स्थिति को प्राप्त करता है इसका अर्थ यह है कि राहु-केतु की स्थिति यदि अनुकूल हो तो कोइर् साधारण इंसान भी एक सिद्ध योगी बन सकता है। इतना ही नहीं इन्हे मनुष्य के डीएनए से भी जोड़कर देखा जाता है। यदि मनुष्य राहु और केतु के प्रभावों का सकारात्मक दिशा में उपयोग करे, तो राहु-केतु उसे तीनों लोक का वह सुख दे सकते है जो कोई और ग्रह नहीं दे सकत।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम