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पितृपक्ष और उसका महत्व, श्राद्धपक्ष 2025 से जुड़ी हर जानकारी

पितृपक्ष और उसका महत्व, श्राद्धपक्ष 2023 से जुड़ी हर जानकारी

पितृ पक्ष क्या है ?हिंदू धर्म और धर्म ग्रंथ केवल जीवन तक सीमित नहीं उनमें मृत्यु के बाद के जीवन का भी बखूबी विवरण मिलता है। मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद भी मनुष्य का सूक्ष्म रूप पितृ लोक में मौजूद रहता है। विक्रम संवत् के अनुसार साल के मध्य में पड़ने वाले अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक, सूक्ष्म रूप में रहने वाले हमारे पितृ या पूर्वजांे की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा, दान-पुण्य किया जाता है। इन दिनों में पितरों के श्राद्ध की परंपरा होती है। गणेश उत्सव के बाद अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक मानाये जाने वाले पंद्रह दिनी महापर्व को हम पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष के रूप में जानते है।


भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म ग्रंथों में माता-पिता की सेवा को ही सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। धर्मानुसार पितृपक्ष वह पवित्र समय है, जब उन पुर्वजों को याद किया जाता है जिनके कारण हमारा अस्तित्व है। पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष के दौरान आने वाली उस तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए, जिस दिन उनका देहावसान हुआ था। जिन्हे अपने पितरों के देहावसान की तिथि का ज्ञान नहीं वे लोग अमावस्या के दिन आहुति प्रदान कर सकते है।

श्राद्ध का सीधा संबंध श्रद्धा से है, श्राद्ध अर्थात अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक उनके प्रिय व्यंजन और भोग्य वस्तुओं की आहुति देना। आहुति से निकली धूम्र पितरों के प्रति आपकी निष्ठा, सेवा भाव और समर्पण दर्शाती है। इस प्रक्रिया का पालन करते हुए हमें गाय, कुत्ते और कौआ को पितरों के लिए बना भोजन अर्पित करना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार गाय, कुत्ते और कौआ परलोक के साथ संपर्क साधने में सक्षम है साथ ही इन्हे पितरों का दूत भी माना जाता है। पितरों के नाम से गरीबों और बेसहारा लोगों को भोजन कराने से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितरों के प्रसन्न होने से आपके जीवन में सफलता और खुशहाली आती है।

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2025 श्राद्धपक्ष 07 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक चलने वाले है। मान्यताओं के अनुसार श्राद्धपक्ष में पितृ अपना लोक त्यागकर हमारे साथ रहने आते है इसलिए इस दौरान किसी प्रकार के तामसिक भोजन अर्थात मांस, मटन, मछली का सेवन ना करें। इन दिनों धुम्रपान, मदिरापान और अन्य बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए। इन दिनों में श्रीमद् भगवत गीता या भागवत का पाठ करने से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

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