भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली का विश्लेषण जीतना सरल दिखता है, उतना ही कठिन भी है। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, जो इस साल २ सितंबर २०१८ को है। महानिशिथकाल में जन्मे भगवान कृष्ण के जन्म के समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में थे। भगवान का जन्म वृष लग्न में हुआ। इस समय लग्न में केतु और चंद्रमा दोनों ही स्थित थे। भगवान के चौथे भाव में सूर्य उच्च राशि के थे। पंचम भाव में बुध कन्या राशि के है, जो उनकी स्वगृही राशि है। छठे भाव में शुक्र और शनि के साथ शत्रुहंता योग बनाते हैं। शुक्र खुद की राशि तुला में है और शनि तुला में उच्च राशि के है।
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खुद सूरदासजी ने भगवान के जन्म समय के दौरान आकाशीय ग्रहों की स्थिति का वर्णन अपने दोहे में किया है।
नन्दजू मेरे मन आनन्द भयो, मैं सुनि मथुराते आयो,
लगन सोधि ज्योतिष को गिनि करि, चाहत तुम्हहि सुनायो ।
सम्बत्सर ‘ईश्वर’को भादों, नाम जु कृष्ण धरयो है,
रोहिणि, बुध, आठै अँधियारी ‘हर्षन’जो परयो है।
बृष है लग्न, उच्च के ‘उडुपति’, तन को अति सुखकारी,
दल चतुरंग चलै सँग इनके, हैं रसिक बिहारी ।
चोथी रासि सिंह के दिनमनि, महिमण्डल को जीतैं,
करिहैं नाम कंस मातुल को, निहचै कछु दिन बीतै ।
पंचम बुध कन्या के सोभित, पुत्र बढैंगे सोई ,
छठएं सुक्र तुला के सनिुत, सत्रु बचै नहिं कोई ।
नीच-ऊँच जुवती बहु भोगैं, सप्तम राहु परयो है,
केतु ‘मूरति’में स्याम बरन, चोरी में चित्त धरयो है।
भाग्य–भवन में मकर महीसुत, अति ऐश्वर्य बढैगो,
द्विज, गुरुजन को भक्त होइकै, कामिनि-चित्त हरैगो ।
सूरदास ने इस पद में श्रीकृष्ण के जन्म समय के दौरान सभी तरह की आकाशीय स्थिति पर विचार किया है। सूरदासजी की गणना में नंदबाबा के घर भगवान का अवतरण हो रहा है। उस समय चारों और हर्ष का माहौल है। वृषभ लग्न में उच्च का चंद्रमा है। अब हम कुछ ऐसी गणनाएं कर सकते हैं, जो सामान्य जातक की तरह देखी जानी चाहिए।
चौथे भाव का सूर्य माता से वियोग का कष्ट देता है। पैदा होते ही कृष्ण को माता देवकी से दूर जाना पड़ा। यहीं नहीं, किशोर अवस्था में माता यशोदा को छोड़कर फिर मथुरा आना पड़ा। इसी भाव के कारण मामा कंस का वध भी हुआ। सूरदासजी ने भी अपने दोहे में इस तरह की बात कही है। पंचम भाव में उच्च का बुध अच्छी संतान का कारक है।
श्रीकृष्ण के घर खुद कामदेव ने बेटे के रूप में जन्म लिया था। उनका नाम प्रदु्म्न रखा गया। प्रदुम्न ने भी एक बड़े राक्षस का वध किया था। वहीं शनि और शुक्र श्रीकृष्ण के बहुत से शत्रु देते हैं, लेकिन शत्रुहंता योग भी बनाते हैं। बाल्यकाल से लेकर जीवनभर उनके बहुत से शत्रु रहे हैं, लेकिन श्रीकृष्ण को कोई हानि नहीं पहुंचा सके हैं। लग्न में केतु हमेशा ही जातक को बहुत गोरा बनाते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण सांवले रंग के थे। वहीं मंगल भी भाग्य स्थान में उच्च के बैठे हैं, जो कृष्ण को पराक्रमी बनाते हैं। वहीं पराक्रमी होने के कारण भाग्य भी उनका साथ देता है।
कुंडली में अक्सर ही राहु का सप्तम स्थान में बैठना एक से अधिक विवाह या संबंध के योग भी बताता है। वहीं दांपत्य जीवन में कठिनाई भी बताता है। श्रीकृष्ण का ज्यादातर जीवन भी समाज के कामों में रहा। कुल मिलाकर कृष्ण की कुंडली जातक को अत्यधिक परिश्रमी बनाती है। यहीं कारण है श्रीकृष्ण हमेशा ही लोगों को कर्म पथ की ओर बढ़ते रहने की सीख देते रहते थे।
(भगवान श्रीकृष्ण की यह कुंडली विशेषज्ञों से बातचीत और पुराणों में दिए गए आधार के अनुसार है।)
गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
आचार्य धर्माधिकारी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम
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