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गुरूपुष्यामृत पर भाग्य, स्मृद्घि और खुशहाली को दें आमंत्रण

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सबसे शुभ नक्षत्रों में से एक पुष्या नक्षत्र है। इस तरह की मान्यता है कि धन संपत्ति की देवी मां लक्ष्मी का जन्म पुष्या नक्षत्र में हुआ था। जब पुष्य नक्षत्र गुरूवार या रविवार को होता है तो इसको क्रमशः गुरुपुष्यामृत या रविपुष्यामृत के नाम से जाता है। इस योग को अक्षय तृतिया, धन तेरस एवं दीवाली की तरह पवित्र तिथि माना जाता है। पुष्य नक्षत्र का स्वामी गुरू है एवं इसकी दशा का स्वामी शनि है। दूसरे शब्दों में कहें तो पुष्य नक्षत्र गुरू के फैलाव एवं शनि के मूल गुण धैर्य का संयोजन है।

ज्योतिष के अनुसार पुष्य नक्षत्र में शुरू किए गए कार्य उम्मीद के अनुसार नतीजे प्रदान करने में सफल होते हैं। इसके अलावा इस दिन शुरू किए गए नए प्रोजेक्ट स्थायी प्रगति तथा सफलता प्राप्त करते हैं। इसी कारण इस समय को नए प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सोने चांदी की खरीददारी को भी अच्छा माना जाता है। इससे भाग्योदय होता है एवं घर में सुख स्मृद्घि प्रवेश करती है।

इस शुभ मौके पर आप रत्न भी खरीद सकते हैं, जो जीवन को सुखद बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा श्री यंत्र एवं गुरु यंत्र समेत अन्य यंत्र खरीदने के लिए भी समय शुभ है। इस दिन आप यंत्र को अपने घर में पूजा विधि के द्वारा स्थापित करके उसकी पूजा कर सकते हैं। इससे आपको अच्छे व सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।

गुरूपुष्यामृत योग के दौरान रत्न, सोने, चांदी एवं यंत्र की पूजा या स्थापना किस तरह करें –

  • सबसे पहले गंगाजल या दूध के साथ रत्न, सोने, चांदी या यंत्र को साफ करें।
  • इसके बाद आप इसे अपने पूजा स्थल पर रखें।
  • उपयुक्त मंत्रों या स्तोत्र के साथ सौभाग्य द्रव्य ( अबीर, गुलाल, कुमकुम, हल्दी एवं सिंदूर का मिश्रण) अर्पित करें
  • सोने, चांदी एवं यंत्र को नैवेध्य अर्पित करें।
  • रत्न, सोने, चांदी एवं यंत्र को स्थापित करने के लिए आरती करें।

इसके अलावा सक्रिय रत्न, सोना, चांदी एवं यंत्र की नित्य पूजा अराधना करने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होगी, जो जीवन में सुख स्मृद्घि लेकर आएगी।

इसके अलावा आप प्रामणिक रत्नरुद्राक्ष एवं यंत्र के लिए हमारे आॅनलाइन स्टोर पर जा सकते हैं।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
धर्मेश जोषी,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम


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