मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायी होता है। ब्राह्राणों को भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु पाठ करना लाभप्रद होता है।
पापों से मुक्ति चाहिए तो करें मोक्षदा एकादशी का व्रत
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी सभी पापों को नष्ट करने वाली है। इसे मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है, जिसे दक्षिण भारत में वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के शुरू होने से पहले अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस कारण इस दिन को गीता जयंती के रुप में भी मनाया जाता है। वर्ष 2023 में मोक्षदा एकादशी 18 दिसंबर को मनाई जाएगी।
मोक्षदा एकादशी पूजन
इस दिन स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा के साथ ही मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन होता है। व्रत के समापन पर ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देना चाहिए। मोक्षदा एकादशी व्रत करने से पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नामक एक राजा था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे। एक रात स्वप्न में राजा को अपने पिता को नर्क में पड़ा देख बहुत दु:ख हुआ। उसने अपने स्वप्न की बात ब्राह्मणों से कहते हुए पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय बताने को कहा। राजा की बात सुन ब्राह्मणों ने भूत-भविष्य के ज्ञाता “पर्वत” नाम के मुनि के पास जाने को कहा। राजा मुनि के आश्रम पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके सारी बात बताई। राजा की बात सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली और कुछ देर बाद कहा कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक बुरा कर्म किया था और उसी पाप कर्म के फल से वे नर्क में गए है। यह सुन राजा ने ऋषि से अपने पिता का उद्धार करने की प्रार्थना की। राजा की विनती पर ऋषि ने कहा कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करने से उनके पिता को मुक्ति मिलेगी। इसके बाद राजा ने अपने परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया और उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया। उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई।
मोक्षदा एकादशी का महत्व
पौराणिक ग्रंथों में मोक्षदा एकादशी को बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करने, उपवास रखने व रात्रि जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। यह एकादशी मुक्तिदायिनी होने के साथ ही समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली माना जाती है।
सूर्योदय के बाद करें पारण
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के दूसरे दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए, लेकिन द्वादशी तिथि यदि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद होता है। इस बात का भी ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। अगर किसी कारण प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए। एकादशी व्रत कभी-कभी लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त जनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूसरी एकादशी (दूसरे दिन वाली एकादशी) के दिन व्रत करना चाहिए।
मोक्षदा एकादशी 2023 तिथि और समय
एकादशी तिथि – 22 दिसंबर 2023
पारण का समय – 08:16 से 07:11 बजे तक (23 दिसंबर 2023)
गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम