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कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन की महत्ता

कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन की महत्ता

भारतीय परंपरा और वैदिक ज्योतिषी के अनुसार सूर्य जीवन में ऊर्जा और केंद्रीयता के प्रतीक हैं। जबकि केतु अनुचितता और बुराई के अंत, तथा शांति और आध्यात्मिक मार्ग का प्रतीक है। जहाँ सूर्य उच्चतम उपलब्धियों का कारक होता है, तो केतु भौतिकवाद के सकल अवगुण का एहसास दिलाने और आध्यात्मिक व नैतिकता की ओर झुकाव बढ़ाने के लिए प्रवत्त होता है। इसलिए जब कुंडली के प्रथम भाव जिसे लग्न भाव के नाम भी जाना जाता में सूर्य-केतु संयोजन होता है तो परिणाम विशिष्ट, अलग और विभिन्न होना तय है। सूर्य-केतु की इस युति के कारण ही जातक अत्यंत गुप्त और रहस्यमय हो सकते हैं। ये करियर और व्यवसाय में वही करते हैं जो इन्हें पसंद आता है। जो कई लोगों को अत्यंत विचित्र और अनोखा लग सकता है। ऐसा कहा जाता है कि केतु की उपस्थिति के कारण सूर्य की चमक कम हो जाती है, और यह हमारे खगोलीय पिता सूर्य को सकारात्मक फल देने में असमर्थ बना देता है। पहले भाव में सूर्य-केतु संयोजन के कारण ही जातक के जीवन में होने वाले समस्त घटना क्रमों में देरी हो सकती है।

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प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन के कारण प्रभावित क्षेत्र

  • व्यवसाय और कैरियर
  • नैतिकता और धार्मिकता
  • जीवन के प्रति दृष्टिकोण
  • समाज के प्रति दृष्टिकोण

सकारात्मक लक्षण/प्रभाव

व्यक्ति का हमारा अहंकार उसे अलग-थलग कर देता है, क्योंकि यह आसपास के व्यक्तियों और दुनिया के बीच एक दीवार खडी कर देता है। सूर्य-केतु संयोग के कारण जातकों के मन में एक सूक्ष्म अहंकार जन्म ले लेता है। इसलिए, ऐसे जातक जीवन में अत्यधिक आध्यात्मिक हो सकते हैं। इनमें आत्मविश्वास की समस्या भी हो सकती है। लेकिन इसका समाधान होने की भी संभावना होती है। नए साल में आपके भीतर कितना आत्मविश्वास रहने वाला है, जानने के लिए प्राप्त करने अपना वर्ष 2024 का व्यक्तिगत राशिफल

ऐसा कहा जाता है कि लगभग 32 से 35 वर्ष की आयु में, उनके आत्मविश्वास के स्तर को बढ़ावा मिल सकता है। प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन के कारण जब जातक अपना आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, तो बहुत उच्च स्थानों प्राप्त कर सकते हैं।

नकारात्मक लक्षण/प्रभाव

प्रथम भाव में सूर्य-केतु का संयोजन जातकों के जीवन में आत्मविश्वास और अहंभाव की कमी पैदा कर सकता है। अहंकार की कमी को आत्मविश्वास की कमी से जोड़ा जाता है, जो जातक के जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। जो सूर्य-केतु संयोजन वैदिक ज्योतिषी के अनुसार जातक के व्यावसायिक विकास में बाधा डाल सकती है। आप भी कर रहे हैं, व्यवसाय-व्यापार में समस्याओं का सामना, तो जानिए उपाय हमारे अनुभवी ज्योतिषियों से!

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सूर्य हमारा केंद्रीय मूल, हमारी आत्मा का सार होता है, जो हमें और हमारे व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। जब सूर्य-केतु के संपर्क में आता है, तो जातकों के मन में पिछले कर्मों का भय पैदा करता है। यह भय जातक को असुरक्षित बना सकता है, जो उसे अनैतिकता और अधर्म के मार्ग और तरीकों की ओर ले जा सकता है। ऐसे में जातक देशी उन व्यक्तियों के विरुद्ध षड्यंत्र रच सकता है, जिनके साथ वे प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह आदत उन्हें एक गलत इंसान बना सकती है।कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन के कारण जातकों को जीवन में सफल होने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है। वे बहुत प्रयास करते हैं, लेकिन किसी न किसी कारण वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते हैं। कठिन परिश्रम के बावजूद, वे ख्याति प्राप्त नहीं कर पाते। क्योंकि केतु और सूर्य प्रबल शत्रु हैं। जैसा कि सूर्य मान्यता, प्रसिद्धि और समृद्धि प्रदान करता है। किंतु केतु के कारण, एक निरंतर जोखिम की स्थिति बनी रहती है कि कहीं आपकी सामाजिक और सार्वजनिक छवि सरकार उच्च अधिकारियों या आपके परिवार के बड़े सदस्यों में द्वारा धूमिल न कर दी जाये। इसके अलावा, ग्रहों की इस स्थिति के कारण, जातक को मातृत्व पक्ष के रिश्तेदारों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

निष्कर्ष

कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य-केतु संयोजन वाले जातक आध्यात्मिक और नैतिक हो सकते हैं। लेकिन उन्हें अपने डर और असुरक्षा को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना चाहिए। यदि वे ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं, तो इससे स्थिति और खराब हो सकती है। पहले भाव में सूर्य-केतु संयोग के कारण जातक अपनी समस्याओं को स्वयं ही हल कर सकते हैं, यदि वे अपनी वास्तविकता और अपने भाग्य की मूल योजना को ध्यान में रखते हुए कार्य करते हैं तो।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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