हिन्दी पंचांग के अनुसार वाघ बरस (vagh baras) पूजा का आयोजन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से गौ माता की पूजा की जाती है। खासकर व्यापारी वर्ग के लोग इस दिन अपने पुराने खाता-बही को देखकर उधारी चुकता करने का काम करते हैं। इसके बाद पुनः अपने सभी लेन-देन को खत्म करके नए खाता-बही की शुरुआत करते है। इस दिन नंदनी व्रत का आयोजन भी बड़े धूमधाम से किया जाता है। इसे गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं दिनभर उपवासी रहकर व्रत करती हैं। इस अवसर पर व्रति गोधूलि वेला में गाय के बछड़े की पूजा करती हैं। साथ ही उसका खूबसुरत श्रृंगार भी करतीं हैं। महिला व्रति विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए इस पर्व को बड़े श्रद्धा भाव से करतीं हैं।
vagh baras (वाघ बरस) पर्व का अर्थ
वाघ बरस (Vagh Baras) का अर्थ किसी का वित्तीय कर्ज चुकाना होता है। इस दिन विशेष रूप से व्यवसायी वर्ग के लोग अपने खाते के उधार को खत्म कर नये बही खाते की शुरुआत करते हैं। इसके बाद पुनः नए लेनदेन की प्रकिया शुरु करते है। इस पर्व को गोवत्स द्वादशी या नादानी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन सभी भक्त पूजनीय व देवताओं के गाय ‘नंदनी’ की पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार वाघ बरस की पूजा करने से भगवान भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते है। यह पर्व पूरे देश में अपार उत्साह के साथ मनाया जाता है।
गुजरात में vagh baras (वाघ बरस)
वाघ वरस पूजा गुजरात में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व दिवाली उत्सव के पहले दिन मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी पर आंध्र प्रदेश स्थित पिथापुरम दत्ता महासंस्थानम में ‘श्रीपाद वल्लभ आराधना उत्सव’ का आयोजन काफी धूमधाम से किया जाता है, जबकि गुजरात में इसे वाघ बरस के रूप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह पर्व गायों को पूजने का त्योहार है। पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह पर्व चंद्र माह के कृष्ण पक्ष के 12 वें दिन मनाया जाता है।
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Vagh Baras (वाघ बरस) की महत्वपूर्ण तिथियां और समय
वाघ बारस (सरकारी द्वादशी) का आयोजन गुरुवार, बुधवार, सोमवार, 28 अक्टूबर 2024 को किया जाएगा
शुभ मुहूर्त – प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त शाम 05:40 बजे से 08:11 बजे तक
पूजा की अवधि – 02 घंटे 31 मिनट
द्वादशी तिथि प्रारम्भ – 28 अक्टूबर 2024 को प्रातः 07:50 बजे से
द्वादशी तिथि समाप्त – 29 अक्टूबर 2024 को सुबह 10:31 बजे
यह पर्व धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़ों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद गायों और बछड़ों को गेहूं के बने पकवान खिलाए जाते हैं।
vagh baras (वाघ बरस) में किए जाने वाले अनुष्ठान
वाघ बरस (Vagh Baras) पर्व के दिन गायों को पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद उनके माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। फिर गाय को फूलों और खूबसुरत वस्त्रों से सजाया जाता है। आस-पास गौमाता न मिलने पर श्रद्धालु मिट्टी के गाय व बछड़े की मूर्ति बना कर पूजा करते हैं। फिर इन मूर्तियों पर कुमकुम और हल्दी अर्पित की जाती है। शाम में गौमाता की पूजा व आरती की जाती है। फिर गाय को मूंग, गेहूं जैसे विभिन्न प्रसाद खिलाया जाता है। इसके बाद भक्त भगवान कृष्ण की पूजा की जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को गाय बहुत थी। इस दिन भगवान विष्णु व श्री कृष्ण की पूजा करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन सभी वर्ग की महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए पूरी श्रद्धा से व्रत रखती हैं। इस दिन सभी व्रति केवल एक बार ही भोजन करतीं हैं। साथ ही वे सभी प्रकार के शारीरिक स्पर्श से परहेज करती हैं। वे पूरी रात जागतीं है। इस दिन व्रति विशेष रूप से दूध या दही का सेवन करने से भी परहेज करते हैं।
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vagh baras (वाघ बरस) पर्व का महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भविष्य पुराण’ में वाघ बरस (Vagh Baras) पर्व का उल्लेख किया गया है। जिसमें दिव्य गाय नंदिनी की कहानी का उल्लेख है। हिंदू धर्म में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि गाय मानव जाति को पोषण प्रदान करती हैं। इस दिन सभी महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। मान्यताओं के अनुसार यदि कोई संतानहीन महिला भक्ति के साथ इस व्रत को करती है तो उन्हें जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन को गोवत्स द्वादशी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय के अवतार श्री वल्लभ की पूजा की जाती है। इस पूजा के माध्यम से देश भर में गायों को संरक्षित करने में सहायता प्राप्त होती है।