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बैसाखी 2025 (Baisakhi 2025): इतिहास और महत्व

बैसाखी(Baisakhi 205), जिसे वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह न केवल फसलों के पकने को बताता है वरन वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किए गए खालसा पंथ की भी याद दिलाता है। भारत में बैसाखी (Baisakhi 2025) को बसंत ऋतु की शुरूआत माना जाता है। यह केवल एक जश्न और खुशियों से भरा त्यौहार नहीं है वरन एक धार्मिक उत्सव है जब दुनिया भर में मौजूद सिख समुदाय खालसा पंथ की स्थापना करने वाले महान गुरु को याद करते हैं। पारंपरिक रूप से बैसाखी का पर्व फसल के पकने तथा किसानों के लिए उल्लास और खुशी का संकेत देता है। बैसाखी को विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में भव्य तरीके से मनाया जाता है, जहां चटक रंगों, अच्छे पकवान, संगीत और नृत्य द्वारा अपनी खुशी को प्रकट करते हैं। इस वर्ष, यह सोमवार, 14 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। यह त्योहार पूरे भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है। असम में इसे ‘रोंगाली बिहू’, बंगाल में ‘नोबो बोरशो’, तमिलनाडु में ‘पुथंडु’, केरल में ‘पूरम विशु’ और बिहार में ‘वैशाखा’ के नाम से जाना जाता है। बैसाखी के बारे में अधिक बेहतर जानने के लिए आगे पढ़ें।

बैसाखी (Baisakhi) का महत्व

बैसाखी के शुभ दिन पर, किसान समुदाय रबी फसल की अच्छी उपज के लिए भगवान का धन्यवाद करता है। इसके साथ ही वह प्रार्थना करता है कि आने वाला समय और भी अधिक सुखद और फलदायी हो। बैसाखी का पर्व सिख समुदाय के लिए और भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। बैसाखी का पर्व खालसा के जन्म की याद दिलाता है। इसी दिन सिख धर्म के खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। वर्ष 1699 में, सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब के केसगढ़ में, सभी दीक्षित सिखों के सामूहिक दल, खालसा की स्थापना की।

बैसाखी (Baisakhi) तिथि और महत्वपूर्ण समय

बैसाखी- सोमवार, 14 अप्रैल 2025
बैसाखी संक्रान्ति का क्षण – 03:30 बजे
मेष संक्रान्ति- सोमवार, अप्रैल 14, 2025 को

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बैसाखी (Baisakhi) का इतिहास: बैसाखी क्यों मनाई जाती है?

नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर की शहादत का मुगल बादशाह औरंगजेब ने सार्वजनिक रूप से सिर कलम करवा दिया था। वह पूरे भारत में इस्लाम का प्रसार करना चाहता था, और गुरु तेग बहादुर ने हिंदू और सिख अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। इस वजह से उन्हें एक खतरा मानते हुए औरंगजेब ने मरवा दिया। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के पश्चात गुरु गोबिंद सिंह को सिखों के अगले गुरु के रूप में स्थान दिया। दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में सिखों के खालसा पंथ की स्थापना की। वह एक ऐसा सैन्य दल बनाना चाहते हैं जो मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचार से हिंदू और सिखों की रक्षा कर सके। इस महान कार्य के लिए उन्होंने बैसाखी के पर्व को चुना। आनंदपुर साहिब में उन्होंने हजारों लोगों के सामने खालसा की स्थापना की।

बैसाखी उत्सव के दौरान गुरु गोबिंद सिंह तलवार लेकर एक तंबू से निकले। वहां उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि जो भी खुद का बलिदान देना चाहे वो आगे आए। एक व्यक्ति आया, गुरु गोबिंद सिंह उन्हें तम्बू में लेकर गए और खून से लथपथ अपनी तलवार के साथ, गुरु अकेले लौट आए। फिर उन्होंने एक और स्वयंसेवक के लिए कहा और इस प्रक्रिया को चार बार दोहराया जब तक कि सभी पांच लोग तम्बू में गायब नहीं हो गए। इससे भीड़ चिंतित हो गई परन्तु कुछ ही देर में गुरू गोबिंद सिंह उन पांच आदमियों को पगड़ी पहना कर बाहर लाए जिन्हें ‘पंज प्यारे’ का नाम दिया गया। तभी से खालसा पंथ की शुरूआत हुई।

बैसाखी का ज्योतिषीय महत्व

वैशाखी के त्योहार का ज्योतिषीय महत्व है क्योंकि इस दिन (मेष) पर सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इस पर्व को मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कुछ अनुष्ठान करने से जातक को जन्म कुंडली में सूर्य को मजबूत करने और इसके हानिकारक प्रभावों से सुरक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है। इस साल 14 अप्रैल को पड़ रही है।

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बैसाखी (Baisakhi) कैसे मनाई जाती है?

  • ग्रेगरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार 13 अप्रैल को मनाया जाता है। परन्तु प्रत्येक 36 वर्षों के बाद त्योहार 14 अप्रैल को मनाया जाता है।
  • बैसाखी के अवसर पर भारत के सभी गुरुद्वारों में प्रार्थना सभाएं होती हैं। सिखों की पवित्र पुस्तक, गुरु ग्रंथ साहिब, को बाहर निकाला जाता है, प्रतीकात्मक रूप से दूध और पानी से नहलाया जाता है और बाद में इसे अपने सिंहासन पर बिठाया जाता है।
  • फिर पुस्तक को गुरुद्वारा मण्डली द्वारा जोर से पढ़ा जाता है। फिर पांच पंच प्यारे पवित्र ग्रंथ से छंद गाते हैं। मंत्रों का जाप करने के बाद, भक्तों को लोहे के बर्तन में तैयार किया अमृत वितरित किया जाता है।
  • खालसा पंथ के उपासक पांच बार अमृत पीते हैं और धर्म के लिए काम करने का वादा करते हैं। सिंहासन के सामने एक छोटी परेड आयोजित की जाती है, जिसमें पांच सिख तलवारें लेकर आगे-पीछे चलते हैं। इस पूरे कार्यक्रम को देखने के लिए परेड के पीछे भारी भीड़ जमा हो जाती है। अन्य समस्त अनुष्ठान गुरु नानक जयंती के समान ही किए जाते हैं।
  • इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में, पवित्र स्नान करने के बाद, विश्वासी विभिन्न प्रकार के धार्मिक समारोहों में भाग लेते हैं। स्नान आम तौर पर गंगा नदी में किया जाता है। धार्मिक कर्मकांड के बाद सभी लोग अपने घर लौटते हैं और अपने घरों के सामने खंभा लगाते हैं फिर उस पर रेशम के झंड़े फहराए जाते हैं।
  • यह उत्सव प्रकृति द्वारा दिए गए अच्छी फसल के आशीर्वाद का आभार देने की याद दिलाता है, और इस अवसर को और भी यादगार बनाने के लिए कई तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
  • सिख समाज के लोग इस दिन पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में जाते हैं तथा अपना शीश नवाते हैं।

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बैसाखी के बारे में रोचक तथ्य

  • इसी दिन ‘खालसा’, जिसका अर्थ है “शुद्ध ह्रदय वाला”, की स्थापना सिख समुदाय की परंपरा, समुदाय और आने वाली पीढ़ियों के लिए विश्वासों को संरक्षित करने के लक्ष्य के साथ की गई थी।
  • इस दिन भक्त पवित्र सिख मंत्रों “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल” का नारा लगाते हैं।
  • बैसाखी समारोह में संगीत बजाने और लयबद्ध ताल प्रदान करने के लिए ढोलक का उपयोग प्रमुख आकर्षणों में से एक है।
  • वे भांगड़ा संगीत पर नृत्य करते हैं और ढोल पर बजने वाले संगीत पर शानदार नृत्य करते हुए मनोरंजन करते हैं।

आखिर में…

बैसाखी का त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। हम प्रार्थना करते हैं कि बैसाखी का हर्षोल्लासपूर्ण त्योहार आप और आपके परिवार के लिए अच्छे समय और खुशियों की शुरुआत लेकर आए। हम आपके उज्ज्वल, उत्साही और सुरक्षित दिन की कामना करते हैं!

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गणेश की कृपा से,

GaneshaSpeaks.com टीम

श्री बेजान दारूवाला द्वारा प्रशिक्षित ज्योतिषी।

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